Saturday, December 10, 2011

मीडिया, चिकित्सा, शिक्षा क्या केवल बिजनस हो सकते हैं.

हाँ.
कैसे?
जैसे हो गए.
पत्रकारिता, शिक्षा या चिकित्सा जैसी सेवाओं या सुविधाओं के बारे में हम लगातार यह कहते रहे हैं कि यह क्षेत्र व्यापार के दायरे में नहीं आते.इन क्षेत्रों में नैतिकता जुड़ी है और नैतिकता का व्यापार नहीं होता. लेकिन हम कुछ भी कहते रहें, ये तो धड़ल्ले से व्यापार की श्रेणी में आ गए.
पत्रकारिता का  अभीष्ट है कि समाज का अहित रोकने के लिए जोखिम उठाये जाएँ.लेकिन अब समाज-कंटकों के हित में निर्दोषों को ज़ख्म दिए जा रहे हैं, और मीडिया में ऐसी कारगुजारी की ख़बरें मनचाहे ढंग से छपवाई जा रही हैं. मीडिया मैनेज करने की घटनाएँ मीडिया को ठेंगा दिखाने से लेकर अब मीडिया की सौदेबाज़ी तक आ पहुंची हैं.एक नया सीन आजकल और देखा जा सकता है. बड़े से बड़ा अखबार दूसरों की भर्त्सना जिस बात के लिए आराम से करता है, वही खुद करता हुआ खुले-आम पाया जा रहा है. यानी वही, कि जो करना है, करो और दूसरों को उपदेश भी झाड़ते रहो.
शिक्षा यानी- किसी को कुछ सिखाने की नैतिकता नहीं, बल्कि जितने पैसे उतनी बड़ी डिग्री.
और चिकित्सा. वह प्रणाली जिस से मरीज़ की जेब स्कैन करके कतरा-कतरा ख़ाली की जाय.रोग भगाने की कोई गारंटी नहीं.
कोई है?
ज़रा बताना, इस बात को पॉजिटिव टोन में कैसे लिखें?        

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...