कल मानव अधिकार दिवस है.मानव अपने अधिकार मांगने का जश्न मनायेगा.
लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह है कि मानव को अपने अधिकार "मानव" से ही मांगने हैं.
दरअसल मानव को डिज़ाइन करते समय ब्रह्माजी से एक भूल हो गई. उन्होंने सबको सब अंगों में बराबर बना कर केवल 'दिमाग' में अलग-अलग कर दिया. दो आँखें, दो कान, एक नाक, दो पैर, दो हाथ, एक गर्दन, एक मुंह, एक सर तो दे दिया पर खोपड़ी के भीतरी नक़्शे में 'एक सड़क सत्तावन गलियां' [कमलेश्वर का उपन्यास है] बनादी.अब हर इन्सान अपनी-अपनी चाल चलता है.बात यहाँ तक पहुँच गई कि मानव को मानव से अपना अधिकार मांगने की नौबत आ गई.
मानव ही घास, मानव ही घोड़ा, मानव ही चिड़िया, मानव ही बाज़... इसलिए और कोई चारा नहीं है- मानव अधिकार दिवस मुबारक.
लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह है कि मानव को अपने अधिकार "मानव" से ही मांगने हैं.
दरअसल मानव को डिज़ाइन करते समय ब्रह्माजी से एक भूल हो गई. उन्होंने सबको सब अंगों में बराबर बना कर केवल 'दिमाग' में अलग-अलग कर दिया. दो आँखें, दो कान, एक नाक, दो पैर, दो हाथ, एक गर्दन, एक मुंह, एक सर तो दे दिया पर खोपड़ी के भीतरी नक़्शे में 'एक सड़क सत्तावन गलियां' [कमलेश्वर का उपन्यास है] बनादी.अब हर इन्सान अपनी-अपनी चाल चलता है.बात यहाँ तक पहुँच गई कि मानव को मानव से अपना अधिकार मांगने की नौबत आ गई.
मानव ही घास, मानव ही घोड़ा, मानव ही चिड़िया, मानव ही बाज़... इसलिए और कोई चारा नहीं है- मानव अधिकार दिवस मुबारक.
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