Tuesday, December 6, 2011

शहरों में रहने वाले

दुनिया में शहरी आबादी भी अच्छी-खासी तादाद में हैं. यदि विश्व के चंद बड़े शहरों को देखें तो वे एक-एक देश के बराबर जनसँख्या को समेटे हुए हैं.
भारत कहने को गाँवों का देश है, लेकिन संसार के १२ बड़े शहरों में भारत के तीन शहरों का शुमार है. मुंबई विश्व में आठवां  सबसे बड़ा शहर है.
शहरी आबादी और ग्रामीण आबादी की किस्म, स्तर, खूबियों और खामियों में बहुत अंतर होता है. जबकि एक मज़ेदार तथ्य यह है कि शहरी आबादी कहीं आसमान से नहीं उतरती. छोटे-छोटे ग्राम्य अंचल ही धीरे-धीरे पनप कर कालांतर में शहर बनते हैं.किसी बहुत बड़े शहर को देखिये, तो उसके जिस्म में कई ग्रामीण टापू मिलेंगे, जिन्हें निगलते हुए शहर आगे बढ़ते हैं. यही पिछड़े और सीधे-सादे गाँव जब किसी फैलते शहर की सीमा में आ जाते हैं, तो इनकी चाल शहरी हो जाती है. लेकिन चंद सालों बाद इस शहर के वाशिंदों में नई चमक और ठसक व्याप जाती है.फिर वहां का कोई रहवासी ग्रामीण नहीं रहता.
जापान का टोकियो हो, अमेरिका का न्यूयॉर्क, ब्राज़ील का साओ-पाउलो हो,या साउथ कोरिया का सियोल,इन शहरों की किसी गली में ग्रामीण हवा नहीं बहती.
चाइना के शेनझेन, यूनाइटेड  किंगडम के लन्दन,अमेरिका के शिकागो, या टर्की के इस्तम्बूल में ऐसा कुछ नहीं है जिसे गैर-शहरी कहा जा सके.
जापान के ओसाका-कोबे-क्योटो, नागोया, सब खालिस शहरी हैं. फिलिप्पीन्स का मनीला, इंडोनेशिया का ज़कार्ता ,नाइजीरिया  का लागोस, मिस्र का कैरो चमचमाती शहरी सभ्यता के ही प्रतीक हैं.लॉस एंजेलस, पेरिस,मोस्को, ब्यूनोस आयरस की तो बात ही क्या?
जिसमें टोकियो नगरिया में तो साढ़े तीन करोड़ लोग बसते हैं.           

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...