हमारे यहाँ काले रंग और काली करतूतों को अच्छा नहीं माना जाता.इसीलिए काग यानी कौवे को भी कोई बड़े आदर से नहीं देखा जाता. लेकिन दूसरी तरफ आज के ज़माने में काली करतूतें ज़रूरी सी हो गई हैं. यदि कोई नेता काली करतूतें न करे तो प्रेस उस पर तवज्जो देती ही नहीं. और यदि किसी नेता पर प्रेस तवज्जो न दे, तो उसका क्या हश्र होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है. नेता का जन्म ही प्रेस के तवज्जो देने से होता है. एक आम आदमी पर भी प्रेस तवज्जो देने लगे तो उसे नेता बनते देर नहीं लगती.
अन्ना हजारे ने अन्न-त्याग का रास्ता जब से दिखाया है हमारा युवा वर्ग गाँधी के इस हथियार को प्रत्यक्ष रूप से जानने लगा है. देश भर में जगह-जगह लोग रोटी छोड़ने को तैयार हैं. अन्ना की बात न सुनी गई तो देश में सृष्टि के इस प्रथम नियम 'भोजन' की महिमा पर ज़रूर आंच आ कर रहेगी.
लोगों की इस रोटी पर अब भ्रष्टाचार रुपी काग की नज़र है.देखना यह है कि इस कौवे का पेट कितना बड़ा है.सिर्फ पेट ही नहीं इसकी चोंच का दम भी तो देखना है, क्योंकि इसे रोटी जिससे छीनने की धुन सवार हुई है, वो कोई एक-दो-तीन लोगों की जमात नहीं, बल्कि देश भर की आम जनता है.
अन्ना हजारे ने अन्न-त्याग का रास्ता जब से दिखाया है हमारा युवा वर्ग गाँधी के इस हथियार को प्रत्यक्ष रूप से जानने लगा है. देश भर में जगह-जगह लोग रोटी छोड़ने को तैयार हैं. अन्ना की बात न सुनी गई तो देश में सृष्टि के इस प्रथम नियम 'भोजन' की महिमा पर ज़रूर आंच आ कर रहेगी.
लोगों की इस रोटी पर अब भ्रष्टाचार रुपी काग की नज़र है.देखना यह है कि इस कौवे का पेट कितना बड़ा है.सिर्फ पेट ही नहीं इसकी चोंच का दम भी तो देखना है, क्योंकि इसे रोटी जिससे छीनने की धुन सवार हुई है, वो कोई एक-दो-तीन लोगों की जमात नहीं, बल्कि देश भर की आम जनता है.
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