Tuesday, March 1, 2011

यहाँ हितग्राही ही भाग्य विधाता होते हैं

जी हाँ, यह भी अमेरिका की एक विशेषता ही है। यहाँ किसी भी कार्य पर प्रतिक्रिया देने वाले सबसे पहले उस काम के लाभान्वित ही होते हैं ।सरकारों का पहला प्रयास भी यही होता है कि किसी भी एक्शन पर पहला फीडबैक उन्ही लोगों का लिया जाये जिनके लिए वह काम किया गया है। कहने का मतलब यह है कि वहां विशेषग्य को बात-बेबात राय देने की ज़रूरत नहीं पड़ती। न ही दलालों या मध्यस्थों की रायशुमारी का बोलबाला है। इस का सीधा-सीधा असर यह दिखता है कि वहां सरकारी योजनाओं या कार्यक्रमों की ट्रिक-फोटोग्राफी नहीं होती। ऐसा प्राय नहीं होता कि बाज़ार किसी कमी से जूझ रहे हों और राजनैतिक छतरी के नीचे बैठे विशेषग्य बयान देते रहें कि कमी नहीं है या यह अस्थाई है। या फिर महंगाई अवाम की कमर तोड़ती रहे और दलाल नेताओं की ज़बान में बोलें कि यह महंगाई विकास के कारण है।
एक छोटी सी बात आपको बताता हूँ। कुछ समय पहले मैं अमेरिका के न्यूयार्क शहर की एक लायब्रेरी में गया। वहां शहर के तत्कालीन मेयर ने पुस्तकों का बजट कुछ समय के लिए कुछ कम कर दिया था। मैंने देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी लायब्रेरी की सुझाव-पुस्तिका में यह लिख रहे थे कि इसके दूरगामी नतीजे होंगे,इसे फ़ौरन बढ़ाया जाये।वहां पुस्तकों के खरीदने वाले अभिकरणों या बेचने वाले विक्रेताओं की आवाज या तो बहुत कम थी या फिर उसे महत्त्व नहीं दिया जा रहा था। अख़बार भी सीधे पाठकों के मंतव्यों को ही महत्त्व दे रहे थे चाहे वे बच्चे ही क्यों न हों। इसे व्यापारियों के हितों पर कुठाराघात की तरह न देख कर हितग्राहियों के नुकसान की तरह ही माना जा रहा था। कहने को बात छोटी और साधारण है पर यह विकास के गंतव्य की पहचान करने की सरकार की इच्छा को प्रदर्शित करती है।

2 comments:

  1. अमेरिका इसीलिए आज विकसित है| लेकिन एक बड़ा सवाल यह ज़रूर उठता है कि क्या भारतीय परिप्रेक्ष्य में ऐसी कल्पना की जा सकती है? अगर हाँ तो वो कौन से तरीके हैं जिन्हें अपनाना ज़रुरी है ताकि अमेरिका में बैठा कोई व्यक्ति इस तरह से तुलना कर सके?

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  2. han, aapki baat sahi hai. un tarikon ki charcha bhi ham karenge. shayad hamara maksad bhi yahi hai. jab koi patang unchi ud rahi ho to use dekhne ke baad yahi dekhna chahiye ki use kaun uda raha hai, kaise uda raha hai,hawa uska sath kitna de rahi hai?

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