मैं नहीं जानता कि ये जो मैंने कहा है, वह ठीक से कह दिया या नहीं।दोहराता हूँ। अमेरिकी लोगों में आपको एक विशेषता मिलेगी-उनके बीच जो समूह-भावना मिलेगी वह लगभग प्राकृतिक ही है। ऐसा कभी नहीं लगता कि उनके बीच किसी समता या समरसता के बीज को सायास रोपा गया है।यदि एक इकाई के रूप में एक व्यक्ति है, तो वह तभी तक है जब तक दूसरा द्रष्टिगोचर नहीं हो रहा। दूसरे के किसी रूप में द्रश्य पर आते ही एक स्वचालित समरसता आपको फिर दिखने लगेगी।
किन्ही समाजों में भरपूर कोशिशों के बाद भी यह साम्य नहीं आ पाता।न्यूयार्क के 'स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी 'के चेहरे पर काफी देर गौर से नज़र रखने,और उसके बाद रास्तों में नमूदार होते अमेरिकी वाशिंदों को पहचानते हुए यह बात मेरे ज़ेहन में आयी। वहां एक मशहूर पर्यटक स्थल होने के नाते आपको कई देशों,कई नस्लों, कई स्तरों के लोग दिखाई देते हैं। इस से आपके लिए यह आसान हो जाता है कि आप इस तरह के अवलोकनों से पर्याप्त निष्कर्ष निकाल लें।यदि आप वहां के लोगों की भाषिक चहल-पहल पर थोड़ा बारीकी से गौर करें तो आप सबकी सारी बात न समझ पाते हुए भी इस बात को भली-प्रकार समझ पाएंगे कि इनमे से कुछ समूह आपके सामने ऐसे आ रहे हैं जिन्हें शायद प्रकृति ने एक गुलदस्ते की तरह पेश कर रखा है। इन गुलदस्तों में अपवादी, विलग फूल भी हैं तो सही मगर उनकी आभा इस तरह महिमा-मंडित है - मानो एक अद्रश्य आदर से संलग्न हो। प्रकृति जिन बातों में अपना दखल रखती है उनमे रखती ही है। फिर चाहे वह किसी देश की कोई धरती ही हो।
किन्ही समाजों में भरपूर कोशिशों के बाद भी यह साम्य नहीं आ पाता।न्यूयार्क के 'स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी 'के चेहरे पर काफी देर गौर से नज़र रखने,और उसके बाद रास्तों में नमूदार होते अमेरिकी वाशिंदों को पहचानते हुए यह बात मेरे ज़ेहन में आयी। वहां एक मशहूर पर्यटक स्थल होने के नाते आपको कई देशों,कई नस्लों, कई स्तरों के लोग दिखाई देते हैं। इस से आपके लिए यह आसान हो जाता है कि आप इस तरह के अवलोकनों से पर्याप्त निष्कर्ष निकाल लें।यदि आप वहां के लोगों की भाषिक चहल-पहल पर थोड़ा बारीकी से गौर करें तो आप सबकी सारी बात न समझ पाते हुए भी इस बात को भली-प्रकार समझ पाएंगे कि इनमे से कुछ समूह आपके सामने ऐसे आ रहे हैं जिन्हें शायद प्रकृति ने एक गुलदस्ते की तरह पेश कर रखा है। इन गुलदस्तों में अपवादी, विलग फूल भी हैं तो सही मगर उनकी आभा इस तरह महिमा-मंडित है - मानो एक अद्रश्य आदर से संलग्न हो। प्रकृति जिन बातों में अपना दखल रखती है उनमे रखती ही है। फिर चाहे वह किसी देश की कोई धरती ही हो।
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