जापान से लगातार आरही खबरें हमें क्या संकेत देती हैं? शायद यह प्रकृति का एक इशारा है कि आज भी सर्वशक्तिमान सत्ता प्रकृति ही है। हम अपनी तमाम प्लानिंग और कार्यक्षमता के बावजूद कभी-न- कभी ऐसे मुकाम पर पहुँच ही जाते हैं, जब हमें महसूस होता है कि अभी भी सब कुछ हमारे हाथों में नहीं है। हमने शक्ति और ऊर्जा के इतने स्रोत विकसित कर लिए कि अब यह स्रोत कब हमारे विकास पर पानी फेर दें, नहीं कहा जा सकता। लेकिन यहाँ एक सवाल फिर यही खड़ा होता है कि क्या ऐसी आपदाओं के प्रत्युत्तर में हम अपनी जिजीविषा को तिलांजलि देदें? कदापि नहीं। किसी आगामी हार के चलते मौजूदा प्रयाण और प्रयास नहीं रोके जा सकते। हमारी कहानी ऐसी नहीं है। हमारा इतिहास तो प्रकृति से लगातार मुठभेड़ का है। हम प्रकृति की सुन कर अपनी करते रहे हैं।हमने अपनी सुनाकर प्रकृति को उसकी मनमर्जी नहीं करने दी है। तो एक बार फिर, हमारा ऐलान वही होना चाहिए, हमारा रास्ता वही होना चाहिए।
सबसे पहले तो सारे विश्व को जापान की जनता को यह भरोसा दिलाना चाहिये कि वे आपदा की घड़ी में अकेले नहीं हैं।फिर हर संभव माली और संवेदनात्मक मदद उनतक पहुंचानी चाहिये। वहां के लोगों को महसूस होना चाहिये कि दुनिया में चारों ओर ऐसे लोग हैं जो उनके साथ ओलम्पिक में खेलते रहे हैं, जो उनके देश घूमने और पढने आते रहे हैं।जो उनके ज्ञान और कर्मठता के कायल हैं।
बहुत ज्यादा देर तक मदद की ज़रूरत उन्हें नहीं पड़ेगी।वे जापान के वाशिंदे हैं।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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