अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन अद्भुत वक्ता थे। उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार कुछ लोग उन्हें किसी भाषण के लिए निमंत्रित करने के लिए आये। वे चाहते थे कि लिंकन किसी सभा में भाषण दें। लिंकन ने उनसे पूछा- मुझे कितनी देर बोलना होगा? आगंतुक विनम्रता से बोले- आपके लिए कोई समय सीमा नहीं है, आप जितना समय चाहें, लें, किन्तु आप जैसे प्रखर वक्ता के लिए भला समय की क्या सीमा।लिंकन ने सादगी से कहा-मुझे यदि पांच मिनट बोलना है तो तय्यारी के लिए काफी समय लगेगा, हाँ, यदि एक-दो घंटे बोलना हो तो तय्यारी की कोई ज़रूरत नहीं है।
लिंकन महोदय का जो आशय था वह आज वक्त्रत्व-कला का एक सिद्धांत बन चुका है। हमें यदि कोई बात संक्षेप में सारगर्भिता से कहनी हो तो इसकी व्यापक तय्यारी होनी चाहिए। यदि हम बिना तय्यारी, बिना सीमा और बिना लक्ष्य के बोल रहे हों तो अनर्गल कुछ भी , कैसे भी बोला जा सकता है।
यह अद्भुत तथ्यात्मक सिद्धांत अमेरिकी संविधान में भली प्रकार देखा जा सकता है। अमेरिकी संविधान आश्चर्यजनक रूप से संक्षिप्त और सरल है। फिर भी ये सुगमता से प्रशासनिक ज़रूरतों को पूरा करता है। दुनिया में ऐसे भी उदाहरण भरे पड़े हैं जब किसी देश के पास लम्बा-चौड़ा संविधान का पोथा उपलब्ध हो और फिर भी प्रशासनिक समस्याएं उसमे से ऐसे निकल-निकल कर गिरती हों जैसे ज्यादा भरी गठरी में से माल-असबाब । फिर नेताओं का सारा समय इसी बात में जाता हो कि इसमें क्या जोड़ा जाये और क्या घटाया जाये।
बड़ा अच्छा लगता है जब आप वाशिंगटन में अमेरिकी संसद का भव्य भवन देखने जाएँ और वहां आपको एक छोटी सी पतली ऐसी पुस्तिका भेंट की जाये जिसे आप जेब में रख कर साथ ला सकें। और यह पुस्तिका है-दुनिया के सबसे सम्रद्ध देश का 'संविधान'।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
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