प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Monday, March 28, 2011
बात वही है जो आप चाहें
कहा जाता है कि नरक आधा भरा हुआ सभागार है। इस छोटे से वाक्य में कहने वाले ने ना जाने क्या-क्या कह दिया है। यह जुमला पिकासो की किसी पेंटिंग की ही तरह है। जिस तरह पिकासो के बनाये चित्र को देख कर सौ लोग सौ तरह की कल्पनाएँ कर लेते हैं, ठीक उसी तरह इस वाक्य के अर्थ भी अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग निकाले हैं। सुनिए, पिकासो की एक तस्वीर जब दस लोगों को एक साथ एक ही जगह दिखाई गई तो उन्होंने अलग-अलग उसके बारे में पूछे जाने पर क्या कहा। एक बच्ची को वह तस्वीर एक उड़ते हुए घोड़े की दिखाई दी। उसी चित्र को एक बुज़ुर्ग महिला ने कुए से पानी खींचती हुई औरत का बताया। एक नौजवान को वह पेड़ की डाल पर बैठा सुनहरी तोता दिखाई दिया, तो एक अन्य व्यक्ति ने उसे युद्ध के बाद वीरान पड़ी रक्त-रंजित ज़मीन के रूप में देखा। तात्पर्य यह है की कला और साहित्य का जादू एक सा है। इसकी कहीं कोई सीमा नहीं है। यही बात विचार की भी है। इसका कोई ओर-छोर नहीं होता । इसे सुनाने वाले के जेहन में उतनी ही बड़ी खिड़की खुल जाती है, जितनी उसके सोच की सीमा होती है। तो नरक को आधा भरा सभागार बताने वाले का आशय भी यही है की दुनिया में बुरे लोग जितने भी हों, अच्छे भी कम से कम उतने तो हैं ही।
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