- अमेरिका में घूमते हुए दो बातों पर आपका ध्यान चला ही जायेगा।वहां ज़्यादातर मकानों में आपको चार दिवारी नहीं मिलेगी। अर्थात चारों ओर बनने वाली 'वाल' का चलन नहीं है। मकानों के अहाते सीधे सड़कों पर खुलते हैं। दूसरे,मकानों की दीवारों में पारदर्शिता ज्यादा है। कांच का प्रयोग अधिकता से होता है। पत्थर की बंद हवेलियों की तरह का निर्माण वहां नहीं के बराबर होता है,जिनमे न बाहर की धूप अन्दर जा सके, न अन्दर की हवा बाहर आ सके।इन हवेलियों में छिपाने को न जाने क्या कुछ होता होगा कि इन की बनावट इतनी अपारदर्शक रखी जाती है। बहरहाल अमेरिकी आशियानों में आपको बेहद खुलापन द्रष्टिगत होता है।
वैसे किसी के घर में बेवजह झांकना असभ्यता मानी जाती है, फिर भी एक उडती नज़र इन मकानों पर डालिए।आपको जो द्रश्य दिखेगा वह मन को सुकून देने वाला होगा। आप देखेंगे कि यदि घर के भीतर कोई बड़ा बुजुर्ग भी है तो वह खाली नहीं बैठा है। उसके पास अनेकों छोटे-छोटे काम हैं। वह घर की सफाई कर रहा है, या पालतू कुत्ते की विष्ठा ही साफ कर रहा है , या फिर घर की मरम्मत का कोई छोटा मोटा काम ही कर रहा है।पेड़-पौधों की साज संभाल करते भी आप उन्हें देख सकते हैं। तात्पर्य यह है कि वहां ऐसा नहीं है कि यदि आपके पास किसी तरह चार पैसे आ गए तो आपके कुत्ते को भी कोई दूसरा संभाल रहा है, आपके पांव कोई दूसरा दबा रहा है, आपको चाय-पानी देने के लिए भी चार नौकर लगे हैं।अर्थात आदमी की सेवा में आदमी लगे होने की अमानुषिक सामंतशाही से दुनिया का यह सबसे विकसित देश पूरी तरह मुक्त है।हैरत तब होती है कि विकलांगों को भी पूरे आत्म-सम्मान के साथ आप यहाँ मशीनों के सहारे अपने काम अपने आप गर्व से करते हुए देखते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
Thursday, March 3, 2011
शीशों के उसपार देखिये
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