Monday, March 21, 2011

बिल्ली अपनी जिज्ञासा से भी मरती है.

जापान के हादसे ने एक चिंता और बढ़ा दी। तकनीक के इतने ज़बरदस्त इस्तेमाल वाले देश में किसी अनहोनी का अंदेशा इतने समय पहले क्यों नहीं महसूस कर लिया गया, कि किसी अनिष्ट से बचने की पर्याप्त तैयारी हो पाती। निश्चित ही जापान ने जितने कम समय में भारी विध्वंस को समझ पाने की तत्परता दिखाई वह किसी भी अन्य देश की तुलना में काबिले-तारीफ ही है। पर फिर भी , क्या ऐसी तकनीक का इतना परिमार्जन और नहीं हो सकता कि जान-माल की हानि न हो? जहाँ तक हमारे भारतीय शहरों का सवाल है, कुछ जयपुर, जोधपुर जैसे शहर तो पानी की कमी को झेलते हुए उभर रहे हैं। इन शहरों में बनती ऊंची इमारतें तो इसी बिना पर खड़ी होती जा रही हैं कि बाद में गहरे तक ज़मीनी पानी का विदोहन करके इनकी प्यास को बुझाये रखने का प्रयास किया जायेगा। ऐसे में यदि ज़मीन ने खोखली होते-होते एक दिन जापान जैसा मंज़र दिखा दिया तो न जाने क्या हाल होगा। कहते हैं, मुसीबत से तभी घबराना चाहिए जब वह सर पर आकर खड़ी हो जाये, नहीं तो आशावादी लोग ' नेगेटिव थिंकिंग ' का आरोप जड़ देते हैं। पर क्या ' आशावादी ' लोगों पर मुसीबत मोल लेने के आदी होने का इलज़ाम नहीं लगाया जा सकता।
बात एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की नहीं है, बात भविष्य को सुरक्षित तरीके से प्लान करने की भी तो है। एक कहावत यह भी तो है कि बुद्धिमान लोग समस्या को सुलझा लेते हैं जबकि विलक्षण लोग समस्या को आने ही नहीं देते।क्या जापान जैसे देश के लोग ' विलक्षण ' की श्रेणी में नहीं आना चाहेंगे?
और भारत में तो हम अपनी गलती भी आसानी से मानने को तैयार नहीं होते। हमारे पास बंदूख चलाने को ' भाग्य ' का कन्धा भी तो है।ईश्वर की लीला भी तो है। हमारी महिमा अपरम्पार है। हम चिंता क्यों करें?बिल्ली अपनी जिज्ञासा के कारण भी तो मारी जाती है।

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