भारत में आज होली का त्यौहार है। वर्षों से ऐसा हो रहा है कि इस त्यौहार पर सब लोग एक दूसरे से मिल कर एक दूसरे पर रंग लगाते हैं और एक दूसरे का मुंह मीठा करवाते हैं। संयोग से आज देश की स्थिति ऐसी है कि लोगों के जीवन में काले- मटमैले रंग घुल गए हैं। देश को महंगाई,भ्रष्टाचार,अराजकता जैसे दानवों ने घेर रखा है और आम आदमी किंकर्तव्य-विमूढ़ सा है। देश की उत्पादकता रसातल में गिरती जा रही है। हर कोई बिना श्रम किये चमत्कारी उपायों से धन कमाना चाहता है। ऐसे में सवाल यह है कि यदि हर कोई बैठे-बैठे खाने की मानसिकता पाल लेगा तो देश कि थाली में भोजन आएगा कैसे?
आइये, इस होली पर हम यह व्रत लें कि जब भी खाने बैठेंगे तो एक बार मन में यह ज़रूर विचार लेंगे कि जो कुछ हम खा रहे हैं, क्या पर्याप्त मेहनत कर के हमने उस पर अपना हक़ बना लिया है?यदि नहीं बनाया, तो यकीन जानिए, आप किसी दूसरे के हिस्से का खा रहे हैं।
आइये, इस होली पर हम यह व्रत लें कि जब भी खाने बैठेंगे तो एक बार मन में यह ज़रूर विचार लेंगे कि जो कुछ हम खा रहे हैं, क्या पर्याप्त मेहनत कर के हमने उस पर अपना हक़ बना लिया है?यदि नहीं बनाया, तो यकीन जानिए, आप किसी दूसरे के हिस्से का खा रहे हैं।
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