शायद हमारी नई पीढ़ी यह नहीं जानती होगी कि लॉर्ड रामा का असली नाम 'राम' था. आज का लोकप्रिय वेस्टर्न योगा भी कभी 'योग' नाम से हमारे देश की जीवन-शैली का हिस्सा था.
हमारे देश के कुछ राज्य ऐसे हैं,जिनकी दिलचस्पी देश की मुख्य धारा में कभी नहीं रही.उन्हें हमेशा अपना अलग राग गाते देखा गया.जब सारा देश हिंदी की बात कर रहा था,वे 'अपनी भाषा' की बात कर रहे थे.जब देश समाजवाद की सोच रहा था वे साम्यवाद का झूला झूल रहे थे.जब देश अहिंसा की बात कर रहा था,वे खंजर पैना कर रहे थे.कहने का मतलब यह है कि उन्हें इंडिया की शर्तों पर चलना मंज़ूर नहीं था,बल्कि वे चाहते थे कि इंडिया उनकी शर्तों पर चले.खैर,इंडिया के संविधान में यही लिखा भी था कि कोई सुर कितना भी बेसुरा हो,उसे दबाया नहीं जायेगा.
चंद दिनों बाद हमारा पश्चिम बंगाल 'पश्चिम बंग' हो जायेगा.निश्चित ही इस नए चोले का नाम आम रिवाज के अनुसार हिंदी में नहीं,अंग्रेजी में लिखा जायेगा,और फिर इसे बंग से बांग होते देर नहीं लगेगी.हमारे अशिक्षित,अल्प-शिक्षित,अर्ध-शिक्षित तो इसे हिंदी में बंग कह भी लेंगे,पर उच्च-शिक्षितों को बांग और बेंग कहने से कौन रोकेगा?
अतः देश के तमाम मुर्गों को बधाई,कि उनकी आवाज़ अब जल्दी ही घर-घर गूंजने वाली है.ममता-बैंड की पहली तान मुबारक.
वैसे मुर्गे भाषा से प्रभावित नहीं होते.वे उसी दूकान के सामने दिन-भर सीना फुला कर घूमते पाए जाते हैं,जिस पर लिखा होता है-"यहाँ मुर्गे का ताज़ा मीट हरसमय उपलब्ध है ".
अभी नाम बदला है, फिर तमाम साइनबोर्ड, स्टेशनरी आदि बदलनी पडेगी, उसके लिये ठेके दिये जायेंगे, उसमें घोटाले होंगे, फिर ....
ReplyDeleteन विकास, न उत्पादन, ठेकेदारी फिर भी ... इससे बेहतर सौदा क्या होगा?
aap wo baat kyun poochhte hain, jo batane ke kaabil nahin hain?
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