इंटर-कॉन्टिनेंटल हैण्ड-बाल प्रतियोगिता में जब कार्लोस आठ गोल करता है तो रसोई में चाय बनाती अमीना के हाथ से चीनी ज्यादा पड़ जाती है.जब डेविड सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब पाने विक्टरी-स्टैंड पर आता है तो बोतल में पेप्सी बाकी बची होने पर भी हडबडाहट में बोतल फेंक दी जाती है.जानते हैं क्यों? ताली बजाने के लिए.
क्या यह उत्तेजना स्त्रियों के लिए नहीं रची जा सकती?
रची जा सकती है. रची जा रही है. रची जाएगी. बस देखना यह है कि यह सब इसी दुनिया में संभव हो जाता है या फिर पुरुषों के हाथ से दुनिया फिसल जाने के बाद.हम भुलक्कड़ भी तो हैं. भूल जाते हैं कि कभी स्त्रियाँ अपना जीवन-साथी चुनने के लिए स्वयंबर रचाया करती थीं, जिसमे दूर-दूर के नर अपने पूरे ताम-झाम, लाव-लश्कर और टाट-कमंडल के साथ शिरकत किया करते थे.यदि ऐसा दौर फिर आ जाता है तो ज़िम्मेदारी किसकी होगी? कम से कम वेनेज़ुएला जैसे राष्ट्रों की तो हरगिज़ नहीं होगी.
प्रेम को प्रतिद्वंदिता से बचा कर रखने की ज़िम्मेदारी आज के दौर की है. यह भूमिका कितनी ही कठिन सही, पर अतीत में निभाई गई है. वह भी काफी आसानी से.
भौगोलिक रूप से छोटे इन महान देशों के पास समय को सबक सिखाने के लिए काफी-कुछ है.उन्माद छोड़ कर किसी से कुछ भी सीखा जा सकता है.
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