क्यों नहीं फैलता अफ्रीका में साम्यवाद, इस प्रश्न के कई उत्तर हैं. सबसे प्रासंगिक उत्तर जो इस समय ग्राह्य हो सकता है, वह है- "क्योंकि वह कहीं नहीं फैलता". लेकिन इस उत्तर से साम्यवादी विचारधारा के लोग संतुष्ट नहीं होंगे.यदि वे सचमुच साम्यवादी हैं तो उन्हें होना भी नहीं चाहिए. क्योंकि साम्यवाद की ही एक परिभाषा यह भी है कि वह अंतिम रूप से सामाजिक ढांचे से कभी संतुष्ट न हो. किसी भी समाज के लिए अपनी स्थिति से संतुष्ट होना उसके विकास और बेहतरी के प्रयत्नों का पटाक्षेप है. और ऐसी स्थिति कहीं भी, कभी भी काल्पनिक ही होनी चाहिए, वास्तविक नहीं.
कुछ लोग यह सवाल भी उठा सकते हैं कि वह क्यों फैले? वास्तव में वह जब भी फैला, जहाँ भी फैला, इसलिए फैला क्योंकि वह पूँजी को भगवान नहीं मानता.पूँजी मंदिर तो हो सकती है पर ईश्वर नहीं.मंदिर और ईश्वर एक बात नहीं है. लाखों लोग मंदिर जाते हैं पर वे ईश्वर के करीब भी नहीं फटकते. दूसरी तरफ, कुछ लोग ईश्वर का साक्षात्कार कर लेते हैं पर वे मंदिर जाने का समय नहीं निकाल पाते. साध्य और साधन में फर्क है ही, और वह हमेशा रहेगा.
एक बार शहर से काफी दूर एक संस्थान ने मुझे किसी कार्यक्रम में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया. मैं घर से निकलने में लेट हो गया, पर मेरे ड्राइवर ने बड़ी कुशलता से तेज़ गाड़ी चलाकर मुझे समय पर पहुंचा दिया. मैंने उसकी हौसला अफज़ाई के लिए उस से कहा-असली 'चीफ गेस्ट' तो तू है, यदि तू मुझे नहीं लाता तो मैं समय पर आ ही नहीं पाता.वह तपाक से बोला- सर, मैं यहाँ आ भी जाता तो यहाँ आकर करता क्या? और आप न आते तो मुझे बुलाता कौन?
साध्य और साधन का अंतर तो है ही.
अफ्रीका में साम्यवाद न फैलने का कारण यही है कि वहां की जीवन-शैली में साम्यवाद के अंतिम लक्ष्य के तत्व पहले से ही मौजूद हैं. हम पहले वहां कुछ समय के लिए पूंजीवाद पहुंचा दें, फिर शायद कभी वे भी प्रतीक्षा करें कि साम्यवाद कब आएगा?
एक पेड़ की छाँव में बैठे लड़के के तन पर यदि महँगी ब्रांडेड कमीज़ है तो पूंजीवाद उसे संतुष्ट मानेगा, पर यदि कमीज़ से असुविधा महसूस करके लड़का उसे उतार फेंके, तो साम्यवाद उसे संतुष्ट मानेगा.
तो अफ़्रीकी जीवन-शैली में साम्यवाद आकर क्या करे?
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