शुतुरमुर्ग जितना बड़ा होता है, उसका सर उतना ही छोटा. और यह कहावत है कि जितना सर उतनी बुद्धि. इसी लिए शुतुरमुर्ग को अपने जिस्म से ज्यादा चिंता अपने सर की होती है. कहते हैं कि जब आंधी आती है तो वह केवल अपना सर रेत में छिपा लेता है, और अपने को सुरक्षित समझने लगता है.इस बार भ्रष्टाचार के विरोध की आंधी आई तो दिल्ली की सल्तनत ने सोचा, बस अपना सर, यानी कि दिल्ली को बचा लो और बाकी देश को भूल जाओ.लिहाज़ा बाबा रामदेव को दिल्ली की सीमाओं से बाहर निकाल कर सरकार अपने को सुरक्षित समझने लगी. इस तरह एक बार फिर "रक्कासा सी नाची दिल्ली". इसी दिल्ली के राज में रोज़ शेर भी मर रहे हैं और मोर भी. अर्थात जंगल का राजा भी और बागों का राजा भी.
थोड़े दिन पहले जब एक समुदाय द्वारा इकट्ठे होकर रेल की पटरियां उखाड़ी जा रही थी तब सरकार को उधर देखने की फुर्सत भी नहीं थी क्योंकि तब सारी रेलें रोक कर बंगाल की कुर्सी का इंतजाम किया जा रहा था. पर अब सरकार को तुरंत एक घंटे में ही एक्शन लेना पड़ा. दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह कहना भी अचंभित करने वाला है कि चुने हुए लोगों को इस तरह भीड़ की बातें नहीं माननी चाहिए. शायद वे यह भूल गए कि यह भीड़ वही है जिसके सामने दंडवत करने का मौसम हर पांच साल बाद आता है.
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