Friday, June 24, 2011

देखभाल कर मक्खी निगलने की "कहानी"

एक बार न जाने कैसे एक मक्खी और खरगोश की दोस्ती हो गई. दोस्ती पूरी तरह बेमेल थी, मगर निभती रही. मक्खी सोचती, मेरा रंग काला है, इस सफ़ेद- झक्क प्राणी के साथ रहने से कुछ तो प्रतिष्ठा बढ़ेगी.उधर खरगोश सोचता, मैं कितना भी तेज़ दौड़ लूं पर उड़ तो नहीं पाता, यह उड़ लेती है, किसी दिन काम आयेगी. बस, ऐसे ही चलता रहा.  
एक दिन घूमता-घूमता एक टिड्डा वहां आ निकला. कुछ दिन से वह भी दोनों की दोस्ती देख ही रहा था. वह खरगोश से बोला- तुम्हें इतना साफ-सफ़ेद रंग कुदरत ने दिया है, दिन-भर ताज़ा हरी-हरी घास खाते हो, इस काली माई को साथ लिए घूमने में तुम्हें लज्जा नहीं आती?खरगोश टिड्डे का इशारा समझ गया, बोला- भाई, तुम उड़ लेते हो न, इसलिए उड़ान भरने की कीमत समझते नहीं हो.पर मैं तो उड़ नहीं पाता, इसलिए इस से कुछ मदद की आशा में बात कर लेता हूँ. 
अच्छा, यह बात है? टिड्डा बोला- अगर ऐसा है तो तुम मेरे घर आ जाया करो, हम साथ-साथ खेला करेंगे. मैं भी तो उड़ान भर लेता हूँ. 
खरगोश बोला- भाई, तुम बिलकुल हरे-हरे घास जैसे हो. तुम तो जानते ही हो, घास मेरा प्रिय भोजन है.तुम्हें देख कर दिन-भर मेरे मुंह में पानी आता रहेगा. यह सुन कर टिड्डा उड़ गया. 
उसके जाते ही मक्खी खरगोश की पीठ पर आ बैठी और बोली- ये चुगलखोर क्या कह रहा था तुमसे? खरगोश ने कहा- कह रहा था कि तुमसे दोस्ती तोड़ लूं.अच्छा, मक्खी आश्चर्य से बोली- देखो, यही थोड़ी देर पहले मुझसे कह रहा था कि मैं तुमसे दोस्ती तोड़ लूं. खरगोश ने उत्सुकता से पूछा- फिर तुमने क्या जवाब दिया? मक्खी बोली- क्या जवाब देती उस मक्कार को, मैंने कह दिया, तेरा स्वभाव खोटा है, तेरी-मेरी नहीं निभेगी. 
दोनों साथ-साथ घूमने निकल पड़े. थोड़ी दूर चले ही थे कि एक बिल्ली ने कहीं से निशाना तक कर खरगोश पर झपट्टा मारा. मक्खी झट से उड़ गई. बिल्ली खरगोश को मुंह में दबा कर झाड़ियों के पीछे जा ही रही थी कि घास में से टिड्डे ने देख लिया. वह मन ही मन बोला- देखो वह धूर्त मक्खी तो जान बचा कर भाग गई, इसके साथ मैं होता तो कम से कम बिल्ली को काट तो लेता.तभी टिड्डे ने सोचा, यह तो मैं अभी भी कर सकता हूँ. उसने पूरा जोर लगा कर बिल्ली की गर्दन पर काट लिया. बिल्ली दर्द से तिलमिला गई और चिल्लाई. मुंह खुलते ही खरगोश उसके चंगुल से निकल भागा. 
बिल्ली के जाते ही मक्खी फिर खरगोश के पास आई पर खरगोश उस से मुंह फेर कर टिड्डे के घर की ओर बढ़ गया.वह सोच रहा था- अनजाने में चाहें निगल भी जाएँ, पर देखभाल कर मक्खी कौन निगले?         

2 comments:

  1. रोज़मर्रा की घटनाओं और व्यवहार को लेकर बुनी ज़बर्दस्त कहानी।

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  2. dhanywad, aapki pratikriya mile n mile, jab mujhe pataa chalta hai ki aapne rachna padh li hai to achchha lagta hai. aap bharteey naye lekhakon me bahut aatmeeyta se lokpriy hain.

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