सौन्दर्य की अवधारणा देखने वाले की आँखों में दर्ज है. दुनिया की सबसे खूबसूरत वस्तु भी, हो सकता है कि कुछ लोगों को न रुचे. इसके विपरीत कोई साधारण सी वस्तु जो एक को रुचिकर न लगे, दूसरे को भा सकती है.शहर के किसी बड़े साड़ी शोरूम पर जाइये, देखिये कि एक-एक महिला ढेर की ढेर साड़ियाँ निकलवाकर उन्हें नापसंद करती जा रही है. जबकि वे सभी वहां बिकने के लिए ही हैं और बिकेंगी भी. तब एक के द्वारा खारिज वस्तु दूसरी नज़र को भा जाना स्वाभाविक ही है. यदि बात हम मानव-सौन्दर्य की करें तो बात में सैंकड़ों इन्द्र-धनुष घुल जाते हैं. सौन्दर्य-द्रष्टि के इतने रंग हो जाते हैं कि आसमान के तारे भी कम पड़ें.
जिस देश में विवाह के लिए लड़की चुनते वक्त गोरे रंग को तरजीह दी जाती है, वहीँ सदियों से सांवले कृष्ण और राम को पूजा जाता है. ऐसे में समय ने न तो कोई रंग सुन्दर सिद्ध किया है और न कोई अंग.रोज़ कुआ खोदना है और रोज़ पानी पीना है. अर्थात सौन्दर्य की नई परिभाषा तभी बन जाती है जब कोई देखने वाली नज़र सामने आती है.
फिर भी कुछ कबीलों के सौन्दर्य-मानक देखिये- कहीं-कहीं लम्बी गर्दन को सौन्दर्य की निशानी माना जाता है. वहां बचपन से ही लड़कियों के गले में वज़नदार धातु की माला पहना दी जाती है. फिर धीरे-धीरे उस माला में और कड़ियाँ बढाते जाते हैं, ठीक गले में पहनने वाले पट्टे की तरह,और उनके प्रभाव से गर्दन लम्बी होती जाती है. 'सुराहीदार' गर्दन शब्द शायद वहीँ से आया है. कहीं बड़ी आँखें सौन्दर्य का पर्याय मानी जाती हैं. ऐसे में आँखों को काजल के प्रयोग से और विस्तार दिया जाता है. कहीं-कहीं तो आँखों को चित्रकारी से इतना बढ़ा लिया जाता है कि मूल आँख तो उसके बीच में बीज की भांति नज़र आती है.
बड़े होठ भी कहीं शोभा बढाते हैं. इन्हें चिमटी-नुमा वज़न लटका कर और बड़ा बनाया जाता है जहाँ ये मुंह से निकली जीभ की तरह बाहर तक लटके दीखते हैं और सौन्दर्य की देवियाँ अपने इस सौन्दर्य को शीशे में देख कर मुग्ध होकर शरमा जाती हैं.बड़े कानों ने भी रूप-रसिकों का ध्यान खींचा है. तरह-तरह के पत्थर या धातु के वजनी कुंडल लटका कर कान को नीचे तक फैलाया जाता है, ताकि चेहरा खूबसूरत दिखाई दे.
अफ्रीका के कुछ देशों में गोरे और काले रंग को नहीं बल्कि चमकीले और फीके-सपाट रंग को सौन्दर्य का आधार माना जाता है. सुन्दर चमकता काला रंग चेहरे में चार-चाँद लगा देता है.उसके बीच से धवल दन्त-पंक्ति दूर से ही चमकती दिखाई देती है.
शरीर की लम्बाई और ठिगनापन भी सौन्दर्य मानकों में शामिल हैं. अंगों का पुष्ट होना भी कुछ कबीलों में गर्व की बात है. जबकि पतली कमर, पतली कलाइयाँ या लम्बी-पतली अंगुलियाँ भी सौन्दर्य की सूची में दाखिल हैं.लड़कों का सौन्दर्य भुजाओं पर फड़कती मछलियाँ और सीने पर उभरी पेशियाँ बढ़ाती हैं. कहीं बालों की लम्बाई को भी सौन्दर्य का मानक माना जाता है किन्तु कभी कहीं "बॉय-कट" विश्वसुन्दरी ताज पहन कर सामने आ जाती है. परंपरागत सौन्दर्य-मानकों को अंतर-राष्ट्रीय सौन्दर्य स्पर्धाओं में काफी परिवर्तित किया गया है. क्योंकि किसी देश में आँखों का छोटा होना या लोगों का ठिगना होना आम बात है. शायद यही कारन है कि सौन्दर्य के बड़े-बड़े खिताब लिए घूमने वाली स्त्रियाँ आज हमें अपने आस-पास की बस्ती में घूमने वाली कन्याओं से बहुत भिन्न नज़र नहीं आतीं.
सच में, बड़ा कठिन है यह कह पाना कि जो हम देख रहे हैं वह कितना कशिश भरा है.इसका जवाब तो आँखों की मदद से देखने वाला मन ही दे सकता है.
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