Wednesday, September 19, 2012

"भीड़" सजातीय पंछियों की एक दिशा में उड़ान नहीं है !

   कल गणेश-चतुर्थी का अवसर था। गणेश के एक अत्यंत भव्य मंदिर के नज़दीक से गुजरते हुए बेतहाशा भीड़ को देखा। छोटे-बड़े, बूढ़े-युवा-बच्चे, अमीर-गरीब सब थे। एक बार लगा कि  दुनिया में भक्ति-भावना और श्रद्धा में कमी नहीं आई है। यदि उपासना में लीन  होने वालों की तादाद इतनी है तो धरती पर कोई संकट कभी आ ही नहीं सकता। लोग मंदिर में जाते हैं तो अधिकाँश कोई न कोई मनोकामना लेकर भी जाते हैं। ईश्वर सबको देता भी है। किसी को जल्दी तो कभी देर से।
   लेकिन कई बार यह सोच कर डर लगता है कि  हम सबकी मनोकामनाएं एक-दूसरे  से जुडी हैं। कहीं ऐसा न हो कि  इस भीड़ में भगवान किसी जेब कतरे, महिलाओं के प्रति हिंसक-आक्रामक अमानुष, या सामान चुराने वाले को भी "तथास्तु" कह दें, श्रमिकों का खून चूस कर मुनाफा कमाने वाले को भी फलने-फूलने का आशीर्वाद देदें, खाने की वस्तुओं में मिलावट करने वालों को भी सम्पन्न बनने का अभयदान देदें।  भगवान  के कार्य में दखल देने की ज़रूरत भी नहीं, वे जो करेंगे, अपनी बनाई धरती के लिए अच्छा ही करेंगे।

8 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने ...

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  2. Aapka aabhar!kya yahi baat 'samooh' athva 'bheed' ko samjhaane ka nirapad rasta hai?

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  3. भगवान् जो करते हैं अच्छा ही करते हैं संतुष्ट जीवन जीने का यही मूल मन्त्र है बहुत अच्छा कहा आपने गणेश चतुर्थी की बधाई

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  4. बहुत सही |जो कुछ भी होता है,अच्छे के लिए ही होता है |
    गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई |

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  5. Aap donon ko dhanywad ! Ganesh ji aapki rachnatmakta ko isi tarah banaaye rakhen!

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