मैं सचमुच चिंतित हो गया था, मुझे लगा कि अब डूबा पानी, कोई बाढ़ नहीं आई, लेकिन शहर पानी का अभ्यस्त नहीं था,इसी से प्रकृति का थोडा सा मज़ाक भी आपदा जैसा लगा। सबसे पहले तो हमारे-आपके बीच वही तकनीकी व्यवधान आया, कि संवाद टूट गया।
अब बादल छट गए हैं। धूप देखेंगे।
अब बादल छट गए हैं। धूप देखेंगे।
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉगmeri kavitayen की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
संवादहीनता सबसे बड़ी खतरनाक स्थिति है . जो मृत्यु से भी भयावह .
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