Saturday, September 29, 2012

फिर कुछ नहीं हो पाता

   रंगों का अपना एक रसायन शास्त्र है।
   पञ्च परमेश्वर पांच ही हैं- लाल,नीला, पीला, काला और सफ़ेद। बस, ये जितनी भी रंग-बिरंगी दुनियां है न, इन्हीं पांच रंगों के सहारे है।
   तमाम हरियाली नीले और पीले रंग की महिमा है। गुलाबी आभा लाल और सफ़ेद का कमाल है। पीला और लाल आपको केसरिया-नारंगी रंग दे रहा है। नीला और सफ़ेद मिलकर आसमानी रच रहे हैं। लाल और नीले ने बैंगनी या जामुनी छटा  रची है।
   किसी भी रंग में सफ़ेद मिलाइए, वह हल्का हो जाएगा। किसी में भी ज़रा सा काला,वह गहरा हो जाएगा।
   रंगों में तीन की मित्रता भी है। लाल, नीला और काला मिला दीजिये, भूरा हो जायेगा। पीले में सफ़ेद और लाल मिलाइए, गेंहुआ और बादामी रंग मिलेगा। काला और सफ़ेद सलेटी देंगे।
   काले रंग की फितरत यह है कि  यह किसी भी रंग को गहरा तो करता है, पर एक सीमा के बाद फिर ऐसा मटमैला कर छोड़ता है, कि  फिर रंग में चमक नहीं आती। धीरे-धीरे फिर कालिमा ही छा जाती है।
   रंगों का अपना एक मनोविज्ञान भी तो है!

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