Tuesday, September 18, 2012

वैज्ञानिक दुनिया को गोल कहें, तो यह गोल ही होगी!

शनिवार का दिन भारत में "इंजिनीयर्स डे "के रूप में मनाया गया। वैसे यह विश्व ओजोन दिवस भी था।
एम.विश्वेश्वरैय्या को याद करते हुए, 'पानी' के लिए जीवन खर्च कर देने वाले इस वैज्ञानिक को इस बार एक अतिरिक्त श्रद्धा से याद किया जा रहा था। शायद पानी को बेमोल समझने वाला दौर ख़त्म हो चुका है, इसलिए सहसा अतीत अनमोल हो गया।
इस दिन एक और प्रतिष्ठित वैज्ञानिक को सुनने का मौका मिला। डा .एस .सी . बोस कह रहे थे कि  जो आरम्भ हुआ है, वह ख़त्म भी होगा। मशीनें इंसान को उसी ढाँचे में फिर ले जा कर खड़ा कर देंगी, जिससे वह मानवता के आरम्भ में आया था।
इसका मतलब यही हुआ कि  हम जहाँ से चले थे, वहीँ पहुँच जायेंगे? कोई बात नहीं, अपने अतीत में देखे दिन फिर से देखना भी हमें आनंद ही देगा।
यह दिन एक और प्रतिष्ठित वैज्ञानिक स्व . प्रो . रेखा गोविल का जन्म दिन भी था। वे कहा करती थीं कि  कुदरत ने आदमी और औरत को प्रकृति की दो समान इकाइयों के रूप में बनाया ज़रूर है,लेकिन इस "समानता"को सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी औरत पर ही है।
वैज्ञानिक अक्सर ठीक ही कहा करते हैं, क्योंकि जो कहते हैं, उसे पहले जांचने के लिए अपना जीवन खपा देते हैं।   

3 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. किसी के कहने से कुछ भी नहीं हो जाता . जब परखा जाता है कसौटी पर खरा उतरता है तभी उसे माना जाता है यूँ ही नहीं

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...