एक बच्चा अपने घर के बाहर खेल रहा था। वह अकेला ही अपना मन लगाने के लिए इधर-उधर से कुछ चीज़ें उठा लाया था, और अब उन्हीं में मगन था।
कुछ देर में एक राहगीर उधर से गुज़रा। उसने बच्चे से ठिठोली करने के मकसद से उससे पूछा- तुम अकेले क्यों खेल रहे हो? क्या तुम्हारा कोई और दोस्त नहीं है?
बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया, वह उसी तरह तन्मय होकर खेलता रहा। राहगीर ने फिर पूछा- अगर तुम्हें अकेले ही खेलना था तो तुम यहाँ बाहर क्यों चले आये। तुम घर के भीतर भी तो खेल सकते थे।
बच्चा फिर चुप रहा, कुछ न बोला। राहगीर अपने को कुछ असहज महसूस करता हुआ आगे बढ़ गया।
वह मन ही मन सोचता जा रहा था, या तो इस बच्चे के पास आवाज़ नहीं है, या फिर यह बहरा होगा। ...बेचारा ...यह सोचता राहगीर उस अजनबी बच्चे के लिए द्रवित हो गया।
वह अभी कुछ ही दूर गया होगा, कि पीछे से बच्चे की कड़कदार आवाज़ आई-" ए , इधर आओ !"
चौंक कर राहगीर ने पीछे देखा, और उत्साह से बच्चे के पास लौटा।
उसके आते ही बच्चे ने अपनी बुलंद आवाज़ में पूछा- "तुम्हारा कोई साथी नहीं है, अकेले क्यों घूम रहे हो?"
इस अप्रत्याशित सवाल से राहगीर सकपका गया, बोला- नहीं नहीं, मैं तो एक ज़रूरी काम से जा रहा था।
बच्चे ने धीरे से कहा - फिर रास्ते में रुक कर गैर-ज़रूरी सवाल क्यों कर रहे थे ? तुम्हें पता नहीं, घर शाम को पांच बजे तक नहीं होता।
-क्या मतलब ? राहगीर बोला।
मेरे पिता बस चलाते हैं, वे ड्यूटी के बाद पांच बजे घर आते हैं। मम्मी शहर के अस्पताल में नर्स हैं, वे सात बजे आती हैं। बच्चा सहजता से बोला।
कुछ देर में एक राहगीर उधर से गुज़रा। उसने बच्चे से ठिठोली करने के मकसद से उससे पूछा- तुम अकेले क्यों खेल रहे हो? क्या तुम्हारा कोई और दोस्त नहीं है?
बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया, वह उसी तरह तन्मय होकर खेलता रहा। राहगीर ने फिर पूछा- अगर तुम्हें अकेले ही खेलना था तो तुम यहाँ बाहर क्यों चले आये। तुम घर के भीतर भी तो खेल सकते थे।
बच्चा फिर चुप रहा, कुछ न बोला। राहगीर अपने को कुछ असहज महसूस करता हुआ आगे बढ़ गया।
वह मन ही मन सोचता जा रहा था, या तो इस बच्चे के पास आवाज़ नहीं है, या फिर यह बहरा होगा। ...बेचारा ...यह सोचता राहगीर उस अजनबी बच्चे के लिए द्रवित हो गया।
वह अभी कुछ ही दूर गया होगा, कि पीछे से बच्चे की कड़कदार आवाज़ आई-" ए , इधर आओ !"
चौंक कर राहगीर ने पीछे देखा, और उत्साह से बच्चे के पास लौटा।
उसके आते ही बच्चे ने अपनी बुलंद आवाज़ में पूछा- "तुम्हारा कोई साथी नहीं है, अकेले क्यों घूम रहे हो?"
इस अप्रत्याशित सवाल से राहगीर सकपका गया, बोला- नहीं नहीं, मैं तो एक ज़रूरी काम से जा रहा था।
बच्चे ने धीरे से कहा - फिर रास्ते में रुक कर गैर-ज़रूरी सवाल क्यों कर रहे थे ? तुम्हें पता नहीं, घर शाम को पांच बजे तक नहीं होता।
-क्या मतलब ? राहगीर बोला।
मेरे पिता बस चलाते हैं, वे ड्यूटी के बाद पांच बजे घर आते हैं। मम्मी शहर के अस्पताल में नर्स हैं, वे सात बजे आती हैं। बच्चा सहजता से बोला।
बहुत खूब..|
ReplyDeleteDhanywad to kya doon,is laghukatha ko sheershak do!
ReplyDeleteMere hisaab se shayad-
ReplyDelete''Aaj Ka Ulajhta Bachpan''
घर शाम को पांच बजे तक नहीं होता।
ReplyDeleteWaah! Bahut Khoob!
Bahut hi sundar,Aaj ke bachhon ki vivashta, jo unehen parents se door le ja rahi hae, ACCHA KaTaKSH
ReplyDeleteDhanywad aap sabhi ka.
ReplyDeletevery touching...
ReplyDeleteThanks.Aapki aaj ki kavita padh kar main kuchh likhne ki soch hi raha tha ki pahle aapne hi tareef kardee. aabhaar!
ReplyDeleteहिंखोज के जरिये आपके ब्लॉग पे आना हुआ, छोटी छोटी रचनाओं में जीवन के हर पहलु का बखूबी समावेश किया है .
ReplyDeleteAapka aabhaar aur swagat!
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