यदि अपनी पोस्ट पर लगातार हमें लोगों के अच्छे कमेंट्स मिलें तो इसके कई अर्थ हो सकते हैं।
एक, हम वास्तव में अच्छा और सबको पसंद आने वाला लिख रहे हैं। दूसरा, हम दूसरों को पढ़ते समय उन पर अच्छा-अच्छा, मीठा-मीठा लिखते हैं, तो दूसरे भी लिहाज़ में हमारे लिए अच्छा लिख कर कमेन्ट कर रहे हैं। तीसरा, कमेन्ट लिखने वाला 'सकारात्मक' सोच का समीक्षक है, इसलिए वह हमारी कमी भी हमें पसंद आने वाली शैली में लिख कर बताता है।
इसी तरह यदि कोई हम पर नकारात्मक या ख़राब टिप्पणी करता है तो इसके भी कई कारण हैं। एक, हमने वास्तव में कोई सबको पसंद न आने वाली या एकान्तिक विचार- युक्त सामग्री लिखी है। दूसरा, टिप्पणीकार हमारे विचार को ठीक उसी सन्दर्भ में समझ नहीं पाया हो, जिसमें हमने उसे लिखा। तीसरा,प्रतिक्रिया देने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क के विचार-कक्ष में पहले से कुछ पूर्वाग्रह युक्त बात दर्ज है, जो उसे टिप्पणी करते समय निष्पक्ष या संतुलित होने से रोक रही है।
लेकिन हर स्थिति में एक बात अवश्य सोचें। टिप्पणीकार ने हमें पढ़ा है, और उस पर अपने सामर्थ्य- भर समय देकर श्रम अवश्य किया है। दूसरा, टिप्पणी हमेशा केवल हमारा मूल्याङ्कन नहीं है, उसमें टिप्पणी देने वाले का मूल्याङ्कन भी समाहित है। तीसरे, यदि कोई लेखक या टिप्पणीकार किसी रुग्ण -मानसिकता का शिकार है भी, तो यह क्रिया उसे स्वस्थ करने की दिशा में वैसे ही सहायक है, जैसे नासूर से जहरीले मवाद का निकल जाना।
एक, हम वास्तव में अच्छा और सबको पसंद आने वाला लिख रहे हैं। दूसरा, हम दूसरों को पढ़ते समय उन पर अच्छा-अच्छा, मीठा-मीठा लिखते हैं, तो दूसरे भी लिहाज़ में हमारे लिए अच्छा लिख कर कमेन्ट कर रहे हैं। तीसरा, कमेन्ट लिखने वाला 'सकारात्मक' सोच का समीक्षक है, इसलिए वह हमारी कमी भी हमें पसंद आने वाली शैली में लिख कर बताता है।
इसी तरह यदि कोई हम पर नकारात्मक या ख़राब टिप्पणी करता है तो इसके भी कई कारण हैं। एक, हमने वास्तव में कोई सबको पसंद न आने वाली या एकान्तिक विचार- युक्त सामग्री लिखी है। दूसरा, टिप्पणीकार हमारे विचार को ठीक उसी सन्दर्भ में समझ नहीं पाया हो, जिसमें हमने उसे लिखा। तीसरा,प्रतिक्रिया देने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क के विचार-कक्ष में पहले से कुछ पूर्वाग्रह युक्त बात दर्ज है, जो उसे टिप्पणी करते समय निष्पक्ष या संतुलित होने से रोक रही है।
लेकिन हर स्थिति में एक बात अवश्य सोचें। टिप्पणीकार ने हमें पढ़ा है, और उस पर अपने सामर्थ्य- भर समय देकर श्रम अवश्य किया है। दूसरा, टिप्पणी हमेशा केवल हमारा मूल्याङ्कन नहीं है, उसमें टिप्पणी देने वाले का मूल्याङ्कन भी समाहित है। तीसरे, यदि कोई लेखक या टिप्पणीकार किसी रुग्ण -मानसिकता का शिकार है भी, तो यह क्रिया उसे स्वस्थ करने की दिशा में वैसे ही सहायक है, जैसे नासूर से जहरीले मवाद का निकल जाना।
एक सार्थक अवलोकन..सच्चाई से रूबरू कराती हुई बढ़िया पोस्ट|
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