एक बार कोमल और कठोर के बीच विवाद हो गया। दोनों तैश में आकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने लगे। जम कर एक दूसरे पर दोषारोपण हुआ। कोमल ने अपनी कितनी ही खूबियाँ गिनाईं, पर कठोर एक सुनने को तैयार न हुआ। लगातार ऐसा होते रहने पर बड़ी मुश्किल हो गई। कठोर को ज़रा भी नर्म होने को तैयार न होता देख आखिर कोमल को ही कड़ा होने का फैसला करना पड़ा।और कोई चारा भी तो न था। कोई किसी को समझाने वाला न था। रहीम नाम के एक कवि ने मामले में दखल देने की ठानी। उसने लिख दिया-
" कह रहीम कैसे निभे, बेर-केर को संग,
ये डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।"
लोगों ने कठोर को लाख समझाया कि बिलकुल कठोर होने से टूटने का खतरा हो जाता है, किन्तु कठोर कहाँ मानने वाला था, उसे तो इस बात का गुमान था कि कोमल मेरा क्या बिगाड़ सकता है। आखिर थक कर एक दिन कोमल ने बेमन से अपनी कोमलता का परित्याग करने का निर्णय ले डाला। दुनिया पत्थर की हो गई।
" कह रहीम कैसे निभे, बेर-केर को संग,
ये डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग।"
लोगों ने कठोर को लाख समझाया कि बिलकुल कठोर होने से टूटने का खतरा हो जाता है, किन्तु कठोर कहाँ मानने वाला था, उसे तो इस बात का गुमान था कि कोमल मेरा क्या बिगाड़ सकता है। आखिर थक कर एक दिन कोमल ने बेमन से अपनी कोमलता का परित्याग करने का निर्णय ले डाला। दुनिया पत्थर की हो गई।
bahut gehri baat likh di aapne ! bahut pasand aayi ye bodh kakha.
ReplyDeleteसुन्दर बोध कथा . नम्रता और कठोरता एक दुसरे के पूरक होते हैं बस हमारे नजरिया को विस्तार दें
ReplyDeleteकठोर की जीद आज सबपर भरी पड़ रही है | लाजवाब कथा |
ReplyDeleteAap donon ka dhanywad!
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