आज जो बातें या प्रक्रियाएं दांव पर हैं, उनमें एक 'अभिवादन' भी है। देखा जाय तो अभिवादन है क्या? जब हम किसी भी परिचित से दिन में पहली बार मिलें, तो कुछ भी कर्ण-प्रिय या सार्थक बोल कर अपनी सद्भावना प्रकट करना। सद्भावना के कोई नियम नहीं होते पर फिर भी परंपरा ने अभिवादन के कुछ नियम बना दिए हैं-
जैसे लोग समझते हैं कि यह 'छोटों' की ओर से बड़ों को किया जाता है। अभिवादन में 'नमस्ते' ,प्रणाम अथवा अथवा ऐसा ही कुछ सम्मानजनक संबोधन रहता है। शायद यही कारण है कि एक दूसरे को अभिवादन करने की परम्परा लुप्त होती जा रही है। क्योंकि अकारण किसी को सम्मान देने की बात लोगों को रुचती नहीं है। कुछ लोगों ने इस व्यवहार में से छोटे-बड़े का भेद मिटाने के लिए 'शुभदिन' या राम-राम जैसे संबोधन भी प्रचलन में ला दिए। लेकिन हमारी धर्म-निरपेक्षता और "अन्य" निरपेक्षता ने इन्हें भी गैर-ज़रूरी बना दिया। कुछ लोगों ने सीधे-सीधे अपने व्याकरण रच लिए- जैसे, यदि किसी से कोई काम निकालना हो तो उसे नमस्कार कर दिया जाय, अन्यथा क्या ज़रुरत? कोई अपने से बड़ा या श्रेष्ठ है तो उस से ईर्ष्या करें न , सम्मान की क्या ज़रुरत? हम अपने को छोटा समझें ही नहीं, तो फिर दूसरा बड़ा कैसे होगा?
वास्तव में यह दो लोगों के बीच मिलने पर 'कनेक्शन जुड़ जाने' का कन्फर्मेशन है, ताकि वे अजनबियों की भांति एक-दूसरे के सामने से न गुजरें। इसमें भावना के आहत होने जैसा कुछ नहीं होना चाहिए, न तो अभिवादक के लिए, और न ही अभिवादित के लिए ।
जैसे लोग समझते हैं कि यह 'छोटों' की ओर से बड़ों को किया जाता है। अभिवादन में 'नमस्ते' ,प्रणाम अथवा अथवा ऐसा ही कुछ सम्मानजनक संबोधन रहता है। शायद यही कारण है कि एक दूसरे को अभिवादन करने की परम्परा लुप्त होती जा रही है। क्योंकि अकारण किसी को सम्मान देने की बात लोगों को रुचती नहीं है। कुछ लोगों ने इस व्यवहार में से छोटे-बड़े का भेद मिटाने के लिए 'शुभदिन' या राम-राम जैसे संबोधन भी प्रचलन में ला दिए। लेकिन हमारी धर्म-निरपेक्षता और "अन्य" निरपेक्षता ने इन्हें भी गैर-ज़रूरी बना दिया। कुछ लोगों ने सीधे-सीधे अपने व्याकरण रच लिए- जैसे, यदि किसी से कोई काम निकालना हो तो उसे नमस्कार कर दिया जाय, अन्यथा क्या ज़रुरत? कोई अपने से बड़ा या श्रेष्ठ है तो उस से ईर्ष्या करें न , सम्मान की क्या ज़रुरत? हम अपने को छोटा समझें ही नहीं, तो फिर दूसरा बड़ा कैसे होगा?
वास्तव में यह दो लोगों के बीच मिलने पर 'कनेक्शन जुड़ जाने' का कन्फर्मेशन है, ताकि वे अजनबियों की भांति एक-दूसरे के सामने से न गुजरें। इसमें भावना के आहत होने जैसा कुछ नहीं होना चाहिए, न तो अभिवादक के लिए, और न ही अभिवादित के लिए ।
परंपरा से परिचित कराने का शुक्रिया .सुन्दर लेख के लिए बधाई
ReplyDeleteDhanywad!
ReplyDeletePretty nice post. I simply stumbled upon your weblog and wanted to say that I have truly enjoyed surfing around your blog posts.
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