Saturday, September 1, 2012

ये जीत किसकी है, ये हार किसकी है, ऑस्ट्रेलिया और भारत का मैच अनिर्णीत

क्रिकेट हो या कोई और खेल, अनिर्णीत रह जाने के लिए कोई आसानी से तैयार नहीं होता। कोई न कोई फैसला तो होना ही चाहिए। भरसक जोर लगाने पर भी यदि जीत न मिले तो मन करता है कि  गोल के सामने से खिसक जाओ, ट्रॉफी किसी के तो हाथ लगे। रखी-रखी किस काम की।
पर फ़िलहाल जिस खेल की बात हम कर रहे हैं, उसमें यह तय कर पाना लगभग नामुमकिन है कि  कौन हारा , कौन जीता। पहली नज़र में तो ऐसा लगता है दोनों ही हार गए, और साथ में हार गई इंसानियत, दुनियादारी और बुद्धिमत्ता।
ऐसा कौन सा खेल है, और हो क्या गया?
ऑस्ट्रेलिया में एक विज्ञापन निकला और उसमें निर्देश था कि  भारतीय आवेदन न करें !
लगता है कि  ऑस्ट्रेलिया नस्लीय भेदभाव की गिरफ्त में आने वाला इक्कीसवीं सदी का पहला नया देश बन गया। और उधर भारत भी कबीलाई मानसिकता को सीने से चिपकाए रहने वाले देश की छवि से निजात न पा सका।
ग्लोब्लाइज़ेशन उन्नत देशों की परिकल्पना थी, भारत जैसे विकासशील देश ने इसे धीरे-धीरे सीखा। अब उन्नत देशों को देख कर हम कुछ और सीखें, इससे पहले ही - "आईने सारे उठा कर फेंक दो, कह रहे हैं हम पुराने हो गए।"  

2 comments:

  1. @ ऑस्ट्रेलिया में एक विज्ञापन निकला और उसमें निर्देश था कि भारतीय आवेदन न करें !

    इस लाइन में क्रिया और प्रतिक्रिया काफी तेज हो सकती हैं ,कई बार ऐसी ख़बरें सुनी सुनाई निकलती हैं ! अगर यह पंक्ति सही है तो आप विवरण के साथ देते तो अच्छा लगता !

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    1. यह खबर 'राजस्थान पत्रिका' और 'दैनिक भास्कर' की है ।

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