Sunday, March 3, 2013

जिह्वा बाग़ और तरह-तरह के 'फूल'

बागों की अपनी महत्ता है. निशात बाग़, शालीमार बाग़, मुग़ल गार्डन का जलवा आज भी कायम है। जब बड़े और रईस लोग रहने के लिए मकान बनाते हैं, तो उसमें शानदार बगीचे का प्रावधान ज़रूर होता है। यहाँ तक कि  अब तो लोग आसमानी ऊंचाई पर भी टेरेस गार्डन बना लेते हैं। बेबिलोन के हैंगिंग गार्डन तो बरसों से जग-विख्यात हैं। बड़े-बड़े नेता और अफसर चाहे दिनभर उदघाटन, भाषण, मीटिंग आदि के लिए घर से बाहर रहें, पर उनके बंगलों के इर्द-गिर्द बगीचे बनाए जाते हैं।
बचपन में हमारे विद्यालय के आगे भी एक बगीचा होता था, जिसमें तरह-तरह के फूल लगे होते थे।
संसद और विधान सभाओं के परिसर में भी तरह-तरह के फूल ...खैर, बात लम्बी हो गई।
विद्यालय के बाग़ में एक फिसलनी [स्लाइड्स] होती थी, जिस पर हम लोग जाकर खाली समय में फिसला करते थे। फिसलने में कभी आनंद आता था तो कभी चोट लग जाती थी।
आजकल वैसी फिसलनी बड़े-बड़े लोगों के मुंह के भीतर ही होती हैं। जहाँ उनकी जिह्वा जब चाहे फिसलती रहती है। इसमें कभी आनंद आता है [ उन्हें] तो कभी चोट लगती है [दूसरों को]।    

10 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|

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  2. इस जिह्वा की लगाम भी अजीबो गरीब है | बहुत सुन्दर

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