दोस्त चार प्रकार के होते हैं। एक, जिनसे मिलने की इच्छा हर समय बनी रहती है। दूसरे वे, जिनका इंतज़ार रहता है। तीसरे, जिनके आने की आहट कानों में गूंजती रहती है।चौथे वे, ...जो शायद आ गए! दरवाज़े की घंटी बज रही है। बाकी बात बाद में ...अभी आप सब को होली की शुभकामनायें!
सुबह आपसे हो रही बात के बीच ही एक विराम आया था, जिस से बात रुक गई थी। आज शाम को जब मैं घूमने निकला तो सड़कें काफी खाली-खाली सी थीं। कारण भी था, त्यौहार के अवसर पर आसपास के बहुत से लोग शहर छोड़ कर निकल जाते हैं। जो स्थानीय लोग होते हैं वे भी अपनों के बीच घर पर ही रहना पसंद करते हैं। बहरहाल, खाली सड़क पर घूमने का एक लाभ यह हुआ कि मैं घूमते-घूमते भी कुछ सोच पाया। मैंने सोचा कि टहलने के साथ-साथ इस बात का जायजा भी लिया जाए, कि होली का त्यौहार रंग खेल कर न मनाने वाले लोग लगभग कितने और कौन से हैं। मैंने पाया-
१. वे रोज़ रोटी कमाने वाले लोग, श्रमिक, साग-सब्जी वाले, रिक्शा वाले रंग नहीं खेल रहे हैं।
२. वे विद्यार्थी, जिनके बोर्ड या विश्वविद्यालय के इम्तहान चल रहे हैं, या शुरू होने वाले हैं, रंग नहीं खेले।
३. कष्ट या रोग में घिरे लोग, या उम्र की थकी पायदानों पर थमे लोग भी रंगों से बेपरवाह थे।
४. कुछ ऐसे लोग भी थे, जो देश के कुछ भागों में घोषित सूखे और पानी की कमी के चलते भी बदन को रंग लेने और फिर पानी से उसे साफ़ करने की इस मुहिम से नहीं जुड़ पाए।
दोस्त देश के भी होते हैं, अपने भविष्य और परिजनों के भी। दोस्त अपने रोज़गार के भी होते हैं। दोस्त कई प्रकार के होते हैं।
सुबह आपसे हो रही बात के बीच ही एक विराम आया था, जिस से बात रुक गई थी। आज शाम को जब मैं घूमने निकला तो सड़कें काफी खाली-खाली सी थीं। कारण भी था, त्यौहार के अवसर पर आसपास के बहुत से लोग शहर छोड़ कर निकल जाते हैं। जो स्थानीय लोग होते हैं वे भी अपनों के बीच घर पर ही रहना पसंद करते हैं। बहरहाल, खाली सड़क पर घूमने का एक लाभ यह हुआ कि मैं घूमते-घूमते भी कुछ सोच पाया। मैंने सोचा कि टहलने के साथ-साथ इस बात का जायजा भी लिया जाए, कि होली का त्यौहार रंग खेल कर न मनाने वाले लोग लगभग कितने और कौन से हैं। मैंने पाया-
१. वे रोज़ रोटी कमाने वाले लोग, श्रमिक, साग-सब्जी वाले, रिक्शा वाले रंग नहीं खेल रहे हैं।
२. वे विद्यार्थी, जिनके बोर्ड या विश्वविद्यालय के इम्तहान चल रहे हैं, या शुरू होने वाले हैं, रंग नहीं खेले।
३. कष्ट या रोग में घिरे लोग, या उम्र की थकी पायदानों पर थमे लोग भी रंगों से बेपरवाह थे।
४. कुछ ऐसे लोग भी थे, जो देश के कुछ भागों में घोषित सूखे और पानी की कमी के चलते भी बदन को रंग लेने और फिर पानी से उसे साफ़ करने की इस मुहिम से नहीं जुड़ पाए।
दोस्त देश के भी होते हैं, अपने भविष्य और परिजनों के भी। दोस्त अपने रोज़गार के भी होते हैं। दोस्त कई प्रकार के होते हैं।
भाई प्रबोध ,
ReplyDeleteदिशा प्रकाशन परिवार की ओर से होली की रंग-बिरंगी शुभकामनाएं स्वीकार करें .
Dhanyawad.
ReplyDeleteDost kyi prakar k hote hain aur hone bhi chahiye.
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