Saturday, March 16, 2013

तोता-चश्म सिर्फ बच्चे ही नहीं, बड़े भी होते हैं

 कहा जाता है कि  बच्चे "तोता-चश्म" होते हैं। अर्थात, वे उसी चीज़ या बात की ओर  ध्यान देते हैं, जो उनके सामने होती है। बाकी को भुला देते हैं। जैसे यदि कोई बच्चा अपने पापा के साथ जाने को मचल रहा हो, और उसकी मम्मी उसे कोई खिलौना दिखा कर बहलाए, तो बच्चा पापा से ध्यान हटा कर खिलौने की ओर  आकर्षित हो जाता है।
लेकिन यह बात केवल बच्चों की ओर से ही नहीं होती, बल्कि बड़े भी ऐसा ही करते हैं।
आजकल यह चलन बनता जा रहा है कि  लोग जेलों की सुविधाओं पर सवाल उठाने लगे हैं। जैसे- जेल में रोटी अच्छी नहीं मिली, रोगी की देखभाल नहीं हुई, उसके साथ व्यवहार अच्छा नहीं हुआ, आदि -आदि। ऐसा कहने वाले "मानवता" के हितैषी यह बिलकुल भूल जाते हैं, कि  वह वहां क्यों आया था? यदि उसके कुछ अधिकार हैं, तो उसके भी कुछ अधिकार थे, जिसे मार कर ,जिस पर हमला कर के, या जिसकी चोरी करके कोई कैदी यहाँ आया था। जो मारा गया,वो गया, अब जो बचा, उसके ठाठ-बाट में कमी नहीं आनी चाहिए? क्या यही है न्याय?
जिस दरिन्दे ने पिशाचों की तरह हमला करके निर्दोष लड़की का जीवन सरेआम उजाड़ा, उसपर भी ये सवाल उठ रहे हैं, कि  उसे कौनसी-कैसी यातनाएं जेल में दी गईं, जिसके कारण उसने आत्म-ह्त्या कर ली। क्या ऐसा कहने वाले भी उसके अपराध में शामिल नहीं माने जाने चाहियें?  

4 comments:

  1. आपकी बात ध्यान देने योग्य है

    ReplyDelete
  2. बात तो विचारणीय है , इस पर लम्बी बहस की जरूरत है .

    ReplyDelete
  3. Har sikke ke do pahlu hote h,hume jo pahlu thik lagta h usse dekhkar,nirnay de dete hain...

    ReplyDelete

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...