भारत का गुलाबीनगर जयपुर इन दिनों एक अजीबो-गरीब संकट से जूझ रहा है। आम दिनों में लोगों के अधिकार की रक्षा करने वाले वकील इन दिनों खुद अपनी ज़रूरतों की जंग लड़ रहे हैं। इन्हें सड़कों पर नारे लगाते, शहर के महत्वपूर्ण और संवेदन शील इलाकों की ओर कूच करते, तथा पुलिस पर पत्थर फेंकते शहर के छोटे-बड़े हर वाशिंदे ने देखा है। अब देखना यह है कि सब कुछ सामान्य हो जाने के बाद ये लोग जनता को "क़ानून अपने हाथ में न लेने" की सलाह किस तरह देंगे।
विडम्बना यह भी है कि शहर की पुलिस को भी अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए ऐसे ही उपायों का सहारा लेना पडा। जब माननीय न्यायालय ने कुछ पुलिस उच्चाधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया, तो पुलिस वाले भी उनके समर्थन में सड़क पर आ गए। पुलिस कर्मियों का अपने वरिष्ठों के लिए ये सम्मान अच्छा लगा। फिर भी, कुछ ऐसा हो पाता जो जनता के लिए सुविधाजनक होता, तो शायद और बेहतर होता।
विडम्बना यह भी है कि शहर की पुलिस को भी अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए ऐसे ही उपायों का सहारा लेना पडा। जब माननीय न्यायालय ने कुछ पुलिस उच्चाधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया, तो पुलिस वाले भी उनके समर्थन में सड़क पर आ गए। पुलिस कर्मियों का अपने वरिष्ठों के लिए ये सम्मान अच्छा लगा। फिर भी, कुछ ऐसा हो पाता जो जनता के लिए सुविधाजनक होता, तो शायद और बेहतर होता।
No comments:
Post a Comment