Thursday, January 31, 2013

घर

घर दो प्रकार के होते हैं।
एक घर में सुबह दिन उगने के साथ खिड़कियाँ खुलते ही धूप , हवा,पक्षी, गंध,तितलियाँ,मक्खियाँ,आवाजें आदि भीतर आने लग जाते हैं। दिनभर रौनक, चहल-पहल रहती है। वहां दोपहर होती है, तीसरा पहर होता है। शाम होती है।
दूसरे घर में सुबह दिन उगने के साथ खिड़कियाँ खुलते ही सुस्ती, घुटन, भीतर की हवा, गंध, और थकान बाहर निकलने के लिए उद्यत हो उठती है। कुछ ही देर में घर "दुनियां देखने" और दुनियां सँवारने, घर से बाहर निकल जाता है। सुबह के बाद शाम होती है, और होता है उपलब्धियों का मूल्यांकन।
पहले में जीवन बटा  हुआ होता है, कुछ लोग जीवन की गतिविधियों के रंग-मंच पर होते हैं, और कुछ उनके सहायक के तौर पर उनके लिए कार्य करते, अथवा जीवन से निवृत्त लोग होते हैं।
दूसरे में सब जीवन को सार्थक बनाने की मुहिम में अपनी-अपनी भूमिका खोजते लोग होते हैं।
इन दोनों मॉडलों में से "श्रेष्ठ" का चयन एक बेहद मुश्किल काम होता है।

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