वास्तव में यह कदम ऐसा ही है। लोग अभी से इसे लेकर बँट गए हैं, कोई इसे आधुनिक समाज की उपलब्धि बता रहा है तो कोई इसमें खतरे और हताशा देख रहा है।
भारत में इन दिनों एक दिलचस्प विमर्श चल रहा है। यह विमर्श है बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था की मान्य आयु को लेकर।
अब तक यह माना जाता था कि 18 वर्ष का व्यक्ति युवा हो जाता है। 15 से 18 के बीच किशोरावस्था मानी जा रही थी। और 15 से नीचे की उम्र को बचपन की संज्ञा दी जा रही थी।
लेकिन अब इसमें नई पीढी के मानसिक विकास को देखते हुए प्रस्तावित है कि बचपन को 12 वर्ष तक, 12 से 15 की आयु को किशोरावस्था और 15 की आयु को युवा हो जाने की निशानी मान लिया जाय।
ऐसा एक बार पहले भी किया जा चुका है, जब युवाओं की आयु 21 से घटा कर 18 की गई थी, और उन्हें इसी आधार पर वोट देने का अधिकार भी प्रदान किया गया था।
यह सही है कि आधुनिक सुविधाओं और प्रणालियों ने 15 साल के बच्चों को समझदार बना दिया है। फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि 15 साल तक के बच्चों को बचपन जैसी संरक्षा दी ही जानी चाहिए, और 15 से अधिक होते ही उन पर युवाओं जैसा भरोसा भी नहीं किया जा सकता।
आपकी क्या राय है?
भारत में इन दिनों एक दिलचस्प विमर्श चल रहा है। यह विमर्श है बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था की मान्य आयु को लेकर।
अब तक यह माना जाता था कि 18 वर्ष का व्यक्ति युवा हो जाता है। 15 से 18 के बीच किशोरावस्था मानी जा रही थी। और 15 से नीचे की उम्र को बचपन की संज्ञा दी जा रही थी।
लेकिन अब इसमें नई पीढी के मानसिक विकास को देखते हुए प्रस्तावित है कि बचपन को 12 वर्ष तक, 12 से 15 की आयु को किशोरावस्था और 15 की आयु को युवा हो जाने की निशानी मान लिया जाय।
ऐसा एक बार पहले भी किया जा चुका है, जब युवाओं की आयु 21 से घटा कर 18 की गई थी, और उन्हें इसी आधार पर वोट देने का अधिकार भी प्रदान किया गया था।
यह सही है कि आधुनिक सुविधाओं और प्रणालियों ने 15 साल के बच्चों को समझदार बना दिया है। फिर भी कुछ लोग मानते हैं कि 15 साल तक के बच्चों को बचपन जैसी संरक्षा दी ही जानी चाहिए, और 15 से अधिक होते ही उन पर युवाओं जैसा भरोसा भी नहीं किया जा सकता।
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