पिछले दिनों मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा, कि साहित्य अब गुम होता जा रहा है, यह कहीं दिखाई ही नहीं देता। मित्र की चिंता की क़द्र करते हुए मैं आपको बताना चाहता हूँ, कि यदि हम यह जान लें, कि साहित्य "कब" दीखता या होता है, तो हमारी चिंता शायद कुछ कम हो सके।
साहित्य तब शुरू हो जाता है, जब हम जागते हैं। यह समय व्यक्ति विशेष के लिए कुछ भी हो सकता है। कोई भी कार्य करते समय यह हमारे साथ होता है। यह तब भी होता है, जब हम कुछ नहीं कर रहे होते। यह हर जगह होता है। कई बार तो जो जगह नहीं होती, उसकी संभाव्यता पर मनन करता हुआ भी यह दिखाई देता है।
मजेदार बात यह है, कि आपके सो जाने के बाद भी यह होता है। और हाँ, अक्षर ज्ञान रखने वालों के साथ, खुल्लम-खुल्ला, और निरक्षरों के साथ अनुभूतियों के रूप में होता है।
अभ्यास- "अपनी पूरी ताकत लगा कर वह 'क्षण' और 'स्थान' खोजिये, जब-जहाँ ये नहीं होता।"
साहित्य तब शुरू हो जाता है, जब हम जागते हैं। यह समय व्यक्ति विशेष के लिए कुछ भी हो सकता है। कोई भी कार्य करते समय यह हमारे साथ होता है। यह तब भी होता है, जब हम कुछ नहीं कर रहे होते। यह हर जगह होता है। कई बार तो जो जगह नहीं होती, उसकी संभाव्यता पर मनन करता हुआ भी यह दिखाई देता है।
मजेदार बात यह है, कि आपके सो जाने के बाद भी यह होता है। और हाँ, अक्षर ज्ञान रखने वालों के साथ, खुल्लम-खुल्ला, और निरक्षरों के साथ अनुभूतियों के रूप में होता है।
अभ्यास- "अपनी पूरी ताकत लगा कर वह 'क्षण' और 'स्थान' खोजिये, जब-जहाँ ये नहीं होता।"
बिल्कुल सही कहा आपने . साहित्य हर जगह मौजूद है , जीवन की अनुभूति ही तो साहित्य है . बहरहाल आप विश्व पुस्तक मेले में आमंत्रित हैं .
ReplyDeleteMaza aa gaya, abhi to poora likha bhi nahin tha, aapne padh bhi liya. vastav me saahitya sab jagah hai.
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (26-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सत्य वचन |
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