Tuesday, January 8, 2013

मैं जानना चाहता हूँ कि ये लोग अब कहाँ हैं?

ऍफ़.एच.कांगा, अरुणा शर्मा, अनीता दर, आई.सी.जैकब, ए.बी.पटेल, हूर कनुगा, सुनीता बाली, जैस्मिन बक्सी, रजनी ए.हट्टंगड़ी, सुदर्शन राव, जगदीश प्रसाद, जेम्स आर.सी.मकाया,सुधीर मोघे, बी के जोशी, श्याम सुन्दर, डी  बी खोपकर,एल एस मणि, योजना मंगले, प्रतिमा वी कुलकर्णी, आशा बी कनकिया,उमा हरिहरन, एस जयंती, वी मीरा, स्क्वा लीडर पी के रघुरामन, पी वी डी जय शंकर प्रसाद, जी हरिहर सुब्रमण्यम, मेजर जे एन देवैया, हरीश चन्द्र माथुर और प्रबोध कुमार गोविल
यदि ये मिलते जायेंगे तो मैं आपको बताता जाऊँगा कि  ये कौन हैं।
एक छोटी सी समस्या हो सकती है कि  जब यदि ये लोग मिल जाएँ तो इन्हें पहचाना कैसे जाये।
इनके साथ बचपन में खींचे किसी फोटो का आधा भाग मेरे पास नहीं है।
इनकी बांह में कोई ऐसा टैटू गुदा हुआ नहीं होगा, बिलकुल जैसा मेरी बांह पर भी हो।
इनके गले में कोई ऐसा लॉकेट नहीं होगा जिसमें मेरा भी फोटो छिपा हो।
इनके घर के किसी नौकर, दाई या माली के पास बचपन के वो कपड़े सुरक्षित नहीं रखे होंगे जो इन्होंने मुझसे अलग होते वक्त पहन रखे हों।
कोई कबूतर या बाज़ इनके कंधे से उड़ कर मेरे कंधे पर नहीं बैठेगा।
कोई कुत्ता मुझे सूंघ कर इन पर नहीं भौंकेगा।
फिरभी अगर ये किसी तरह मिल जाएँ तो शायद हिंदी फिल्म निर्माताओं को "बिछड़ों" को मिलाने का कोई और नया तरीका मिल जाए। ढूँढिये -ढूँढिये।         

No comments:

Post a Comment

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...