Thursday, January 10, 2013

यह सुविधा केवल उन्हें ही क्यों?

भक्ति कालीन और रीति कालीन कवियों को एक सुविधा प्राप्त थी। वे अपनी उक्तियों और वक्तव्यों को व्याकरण के इतर भी तोड़-मरोड़ सकते थे। कहीं वे "तुक मिलाने" के लिए ऐसा कर देते थे, तो कहीं वे अपनी क्षेत्रीय बोलियों के प्रचलन के प्रभाव में आकर ऐसा कर देते थे। बड़े और नाम-चीन कवियों के इस कृत्य को भी आदर और आत्मीयता से देखा जाता था, और कालांतर में उनके यह प्रयोग नए अलंकारों, मुहावरों या उक्तियों को जन्म देते थे। वे लोग तुक मिलाने के लिए गणेश को 'गनेसा'  कह देते थे, तो कृष्ण को 'किसना' कह देते थे।
कुछ विश्व विद्यालयों में परीक्षाओं के बाद परिणाम के साथ एक ऐसी रिपोर्ट भी जारी की जाती है कि  कतिपय परीक्षार्थियों ने कैसे-कैसे अजीबो-गरीब उत्तर लिखे। साहित्य के विद्यार्थियों से मिले कुछ उत्तरों की बानगी देखिये-
तमसो मा ज्योतिर्गमय का अर्थ है- "तुम्हारी माँ  ज्योति के घर गई।"
सूरदास तव विहंसि यशोदा लै  उर कंठ लगायो का अर्थ है- "तब सूरदास ने हंस कर यशोदा जी को गले लगा लिया। "

1 comment:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

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