जिस तरह संपन्न देशों में हर व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा कोड दिया जाता है, यदि उसी तरह हर व्यक्ति का मूल्य-मूल्यांकन [वैल्यू डिटरमिनेशन] करके उसे इंगित किया जा सके तो इससे किसी भी देश की केवल जनसंख्या के स्थान पर उस देश की जनसंख्या की गुणवत्ता और उसकी कुल जन-सम्पदा का वास्तविक मूल्य जाना जा सकता है। यह लगभग प्रति व्यक्ति आय और सकल राष्ट्रीय आय की तरह ही होगा, किन्तु इस गणना से किसी देश की जनसंख्या का वास्तविक महत्व जाना जा सकेगा। इसके लिए देश के नागरिकों की उम्र,शिक्षा,आय,व्यय,संपत्ति,ज्ञान,कौशल,व्यवसाय आदि को आधार बनाया जा सकता है।अभी देखा जाता है कि कुछ देशों के नागरिकों की तो सब जगह मांग बनी रहती है जबकि कुछ देशों से अवांछित शरणार्थियों के रूप में जनसंख्या का पलायन होता है। इस व्यवस्था से कई लाभ होंगे-
-किसी देश की ताकत या महत्व का वास्तविक आकलन हो सकेगा, केवल जनसंख्या आधारित आंकड़ा पर्याप्त नहीं हो पाता।
-एक देश से दूसरे के बीच गुणवत्ता-पूर्ण जन-विनिमय हो सकेगा।
-"ब्रेन-ड्रेन" पर नियंत्रण किया जा सकेगा।
-यह देश के भीतर भी नागरिकों के लिए विकास व उन्नति का एक अभिप्रेरक कारक होगा।
-विकासशील देश जन-मूल्य चुका कर भी वांछित जनशक्ति का आयात कर सकेंगे। इसी तरह वे जन-सम्पदा बेच भी सकेंगे।
-अत्यंत कम जनसंख्या वाले संपन्न देश भी वांछित जन -शक्ति खरीद सकेंगे।
-व्यक्तित्व का भू-मंडलीकरण होगा।
-किसी देश की ताकत या महत्व का वास्तविक आकलन हो सकेगा, केवल जनसंख्या आधारित आंकड़ा पर्याप्त नहीं हो पाता।
-एक देश से दूसरे के बीच गुणवत्ता-पूर्ण जन-विनिमय हो सकेगा।
-"ब्रेन-ड्रेन" पर नियंत्रण किया जा सकेगा।
-यह देश के भीतर भी नागरिकों के लिए विकास व उन्नति का एक अभिप्रेरक कारक होगा।
-विकासशील देश जन-मूल्य चुका कर भी वांछित जनशक्ति का आयात कर सकेंगे। इसी तरह वे जन-सम्पदा बेच भी सकेंगे।
-अत्यंत कम जनसंख्या वाले संपन्न देश भी वांछित जन -शक्ति खरीद सकेंगे।
-व्यक्तित्व का भू-मंडलीकरण होगा।
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