कोई भी एक साथ चेतन और भगत नहीं हो सकता। यदि आप चेतन हैं, अर्थात जड़ नहीं हैं, तो आप किसी की कही बात आँख बंद करके नहीं मान लेंगे। आप अपनी चेतना में उसका तथ्यात्मक निरूपण करेंगे, और उसके आधार पर फैसला करेंगे।
यदि आप भगत हैं, अर्थात किसी के अन्धानुयायी हैं तो सोच-विचार से आपका कोई लेना-देना नहीं। आपका आका, या जिसके आप भक्त हैं, वही आपका भाग्य-विधाता है।जो उसने कहा है, वही मानिए और जो उसे भाये वही कीजिये।
फ़िलहाल तो आपको यह तय करना है कि आप साईं बाबा को भगवान मानें या नहीं !
उसके बाद यदि समय मिले तो बाकी बातों पर भी विचार कर लीजिये- मसलन, कहाँ घर लेंगे,बच्चों को कहाँ पढ़ाएंगे, अपनी बचत कौन से बैंक में रखेंगे, कार लेंगे या फ़िलहाल दोपहिया से काम चलेगा, शाहरुख़, आमिर,ऋतिक वगैरह को थियेटर में देखेंगे या टीवी पर, मिल्खा को भारतरत्न दिलाना चाहेंगे या मैरीकॉम को, क्रिकेट खेलेंगे या कबड्डी, दिल्ली- संसद की मानेंगे या धर्मसंसद की।
यदि आप भगत हैं, अर्थात किसी के अन्धानुयायी हैं तो सोच-विचार से आपका कोई लेना-देना नहीं। आपका आका, या जिसके आप भक्त हैं, वही आपका भाग्य-विधाता है।जो उसने कहा है, वही मानिए और जो उसे भाये वही कीजिये।
फ़िलहाल तो आपको यह तय करना है कि आप साईं बाबा को भगवान मानें या नहीं !
उसके बाद यदि समय मिले तो बाकी बातों पर भी विचार कर लीजिये- मसलन, कहाँ घर लेंगे,बच्चों को कहाँ पढ़ाएंगे, अपनी बचत कौन से बैंक में रखेंगे, कार लेंगे या फ़िलहाल दोपहिया से काम चलेगा, शाहरुख़, आमिर,ऋतिक वगैरह को थियेटर में देखेंगे या टीवी पर, मिल्खा को भारतरत्न दिलाना चाहेंगे या मैरीकॉम को, क्रिकेट खेलेंगे या कबड्डी, दिल्ली- संसद की मानेंगे या धर्मसंसद की।
भक्ति इंसान की ज़रूरत है। जिसकी जैसी पहुँच, उसके वैसे देवता। सद्दाम हुसैन, लेनिन, माओ आदि के देश में शासकों ने मूर्तियाँ तुदवाईं तो चमचों ने उन्हीं की मूर्तियाँ बनवा दी और मूर्तिभंजक तानाशाह अति प्रसन्न हुए। संसार को बुतशिकनी नहीं, बुद्धप्रबंधन की आवश्यकता है। वर्तमान बयान और उनके विरोधी स्वर शायद उसी दिशा में होनेवाले शुरुआती प्रयास हैं
ReplyDeleteAapka aaklan ekdam sahi hai, Dhanyawad!
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