Sunday, August 3, 2014

साहित्य के अच्छे दिन- एक साक्षात्कार !

जब ये पूछा पार्टी, क्यों हारी ये जंग?
बोलीं सब बतलाऊँगी,लिख दूंगी एक छंद!

कैसे हो गए रोज़-रोज़, घोटाले चहुँ ओर?
बोलीं, कविता में कहूँ, कौन-कौन था चोर!

कौन विरोधी से मिला, कौन आपके साथ?
-ग़ज़ल कहूँगी एक दिन, होगा परदा फ़ाश !

जमाखोर भरते रहे, कौन तिजोरी माल?
-सबका सुनना एक दिन, लघुकथा में हाल!

मँहगाई बढ़ती रही, फूला भ्रष्टाचार !
-रुकिए बनने दीजिये, मुझे कहानीकार

इतना कहिये पॉलिटिक्स, अच्छी या खराब?
-बाबा थोड़ा ठहरिये, पढ़ लेना "किताब" !


2 comments:

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 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...