कभी-कभी महिलाएं इसे "निगरानी" भी समझ लेती हैं, किन्तु वस्तुतः यह निगरानी से ज्यादा "हिफाज़त"का भाव है, जिसके तहत घर से बाहर जाने वाली लड़की-महिला से घरवाले आभासी संपर्क बनाये रखना चाहते हैं। "कॉलेज तो पांच बजे छूट गया था, अब सात बजे हैं" या "कहीं जाना था तो फोन क्यों नहीं किया? और "जाना क्यों था?" आदि जुमलों में प्रथम दृष्टया कड़े अनुशासन का भाव दिखाई देता है, किन्तु यह रोक-टोक से ज्यादा 'चिंता' की अभिव्यक्ति है। निश्चित ही कुछ महिलाएं इसे चिंता से ज्यादा "चाय-खाने के लिए प्रतीक्षा रत पुरुषों की उतावली भरी प्रतीक्षा" भी मानती हैं, जो कि कभी-कभी ये होती भी है।
लड़कों के साथ ये नहीं होता। कॉलेज पांच बजे छूटा तो रात ग्यारह बजे तक कहाँ थे-साथ में कौन-कौन था- क्या कर रहे थे- फोन क्यों नहीं किया?,यह सब लड़कों से नहीं पूछा जाता।
इस लापरवाही के चलते कहीं कोई ऊँच-नीच हो जाती है, तो पहले मनमोहन जिम्मेदार थे, अब मोदी जी हैं।
लोकतंत्र ऐसे नहीं चलते। बच्चे सालभर पहले पढ़ते हैं, फिर जाकर तीन घंटे का इम्तहान देते हैं। सरकारों से दो-बात पूछने से पहले अपना-अपना साक्षात्कार सब कर लें तो शायद समस्याएं आधी रह जाएँ।
लेकिन ये किसी भी दृष्टि से सरकार या प्रशासन को क्लीनचिट या रिबेट देना नहीं है, केवल उसके काम में जन-सहयोग का आह्वान !
लड़कों के साथ ये नहीं होता। कॉलेज पांच बजे छूटा तो रात ग्यारह बजे तक कहाँ थे-साथ में कौन-कौन था- क्या कर रहे थे- फोन क्यों नहीं किया?,यह सब लड़कों से नहीं पूछा जाता।
इस लापरवाही के चलते कहीं कोई ऊँच-नीच हो जाती है, तो पहले मनमोहन जिम्मेदार थे, अब मोदी जी हैं।
लोकतंत्र ऐसे नहीं चलते। बच्चे सालभर पहले पढ़ते हैं, फिर जाकर तीन घंटे का इम्तहान देते हैं। सरकारों से दो-बात पूछने से पहले अपना-अपना साक्षात्कार सब कर लें तो शायद समस्याएं आधी रह जाएँ।
लेकिन ये किसी भी दृष्टि से सरकार या प्रशासन को क्लीनचिट या रिबेट देना नहीं है, केवल उसके काम में जन-सहयोग का आह्वान !
बिलकुल, ये समस्याएँ किसी जादू की छड़ी से गायब होने वाली नहीं हैं, सतत प्रयत्न चाहिए।
ReplyDeleteAapka sochna sahi hai, aaj pravritti logon ki yahi banti ja rahi hai ki apni or n dekhen samne aakraman jari rakhen .
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