Friday, August 22, 2014

रस्ते में हो गई शाम

"रस्ते में हो गई शाम" संस्मरणों की श्रृंखला है, जिसके अगले भाग में आप पढ़ेंगे कुछ पलों की शेयरिंग - निर्मल वर्मा, विद्या निवास मिश्र,अज़गर वज़ाहत,मेहरुन्निसा परवेज़,सूर्यबाला,चित्रा मुद्गल,राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, तेजेन्द्र शर्मा, धीरेन्द्र अस्थाना,अरविन्द,मधुदीप, धनञ्जय कुमार, दामोदर खडसे,दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, आलोक श्रीवास्तव, नन्द भारद्वाज,वेदव्यास, गोविंद माथुर, प्रेमचंद गांधी …
"कुछ लोग जीवन में इस तरह मिलते हैं कि घंटों साथ बैठ कर जैसे अलाव तापें और करें बातें।
कुछ इस तरह भी, कि माचिस की जलती तीली के क्षणिक उजास में आप देख लें किसी को "-प्रबोध कुमार गोविल          

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हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...