कुछ लोग गरीब हैं। दुनिया के हर कौने में गरीब हैं, कहीं कम कहीं ज्यादा। गरीब की परिभाषा पर दुनिया एक मत नहीं है। कहीं गरीबी को आय से जोड़ा जाता है तो कहीं खर्च से।
गरीब कौन हैं?क्यों हैं? कैसे हैं? यह सब विधिवत अध्ययन की चीज़ें हैं।
कुछ समय पूर्व एक गाँव में बाढ़ आई। एक किसान के बाड़े में दो भैसें बंधी हुई थीं। बाढ़ की अफरा-तफरी में गाँव खाली होने लगा। भैसों की किसे परवाह होनी थी, सब अपनी जान बचा कर भाग रहे थे। थोड़ी ही देर में गाँव में सन्नाटा हो गया। रस्सी से बंधी होने के कारण भैंसें कहीं न जा सकीं। पानी चढ़ता रहा। जब भैसों की ऊंचाई से भी ऊपर निकल गया तो कुछ देर भैसों ने ज़मीन से ऊपर उठ कर तैरने की चेष्टा की। सब जानते हैं कि भैसें पानी में तैर कर आनंदित होती हैं। लेकिन कुछ देर बाद थकान और अचम्भे के कारण भैसों का आनंद हताशा और डर में बदलने लगा।उनके तैरने या हिल-डुल सकने की जद बस उतनी ही थी, जितनी रस्सी की लम्बाई। अलबत्ता बहते पानी में दिशा अवश्य दोनों की तितर-बितर हो रही।
घंटों बीत गए थे।भूख के तेवर भी उत्पाती थे।
कुछ देर बाद एक हरे पेड़ की डाली पानी में बहते-बहते एक भैंस के मुंह के नज़दीक अटक गई।
अब दोनों भैसों की आर्थिक, शारीरिक, और दैवी स्थिति में विराट अंतर था।
गरीब कौन हैं?क्यों हैं? कैसे हैं? यह सब विधिवत अध्ययन की चीज़ें हैं।
कुछ समय पूर्व एक गाँव में बाढ़ आई। एक किसान के बाड़े में दो भैसें बंधी हुई थीं। बाढ़ की अफरा-तफरी में गाँव खाली होने लगा। भैसों की किसे परवाह होनी थी, सब अपनी जान बचा कर भाग रहे थे। थोड़ी ही देर में गाँव में सन्नाटा हो गया। रस्सी से बंधी होने के कारण भैंसें कहीं न जा सकीं। पानी चढ़ता रहा। जब भैसों की ऊंचाई से भी ऊपर निकल गया तो कुछ देर भैसों ने ज़मीन से ऊपर उठ कर तैरने की चेष्टा की। सब जानते हैं कि भैसें पानी में तैर कर आनंदित होती हैं। लेकिन कुछ देर बाद थकान और अचम्भे के कारण भैसों का आनंद हताशा और डर में बदलने लगा।उनके तैरने या हिल-डुल सकने की जद बस उतनी ही थी, जितनी रस्सी की लम्बाई। अलबत्ता बहते पानी में दिशा अवश्य दोनों की तितर-बितर हो रही।
घंटों बीत गए थे।भूख के तेवर भी उत्पाती थे।
कुछ देर बाद एक हरे पेड़ की डाली पानी में बहते-बहते एक भैंस के मुंह के नज़दीक अटक गई।
अब दोनों भैसों की आर्थिक, शारीरिक, और दैवी स्थिति में विराट अंतर था।
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