Tuesday, May 31, 2011

अफ़्रीकी देशों का फलसफा ?

"देने वाला छोटा और पाने वाला बड़ा" यह अफ़्रीकी देशों का फलसफा हरगिज़ नहीं हो सकता. यदि कोई ऐसा सोचता है तो यह सचमुच अफ्रीका, और कम से कम दक्षिण अफ्रीका के साथ तो ज्यादती ही है. वास्तव में देखा जाये तो यह उन लोगों का फलसफा है जो अफ्रीका में जा कर मालामाल हुए हैं. भारत और अन्य एशियाई देशों से हर साल हज़ारों की संख्या में लोग अफ़्रीकी देशों में जाते रहे हैं. कई तो पीढ़ियों से वहां हैं. पर विस्मय की बात यह है कि धन कमाने के लालच में वहां जाने वाले, और अरबों की दौलत वहां से बटोर कर लाने  वाले लोग लौटने के बाद उन देशों की छवि पिछड़े और गरीब राष्ट्रों की बनाते हैं. इस छवि को सुधारने या बदलने का प्रयास करता हुआ कोई नहीं दिखाई देता.न ही इन लोगों से कोई यह पूछने वाला है, यदि वह पिछड़े और गरीब मुल्क हैं तो वहां जा क्यों रहे हो? और ऐसे देशों से मालामाल होकर कैसे लौट रहे हो, जिनके पास कुछ नहीं है. क्या यह कोई चमत्कार है या जाने वालों के पास कोई जादू की छड़ी है? जिसे वहां घुमा कर पेड़ों से नोट बरसाए जाते हैं, या ज़मीन खोद कर अशर्फियाँ निकाली जाती हैं. वहां की प्राकृतिक संपदा और कीमती वन्य-प्राणी उत्पादों की कीमत इन व्यवसाइयों को धनकुबेर बना रही है. परन्तु फिर भी इनकी नज़र में देने वाला छोटा और पाने वाला बड़ा. भारत में तो अफ़्रीकी संपदा की कैफियत लोक कथाओं की भांति प्रचलित है.पर जब किसी भारतीय को विदेश-भ्रमण का प्रस्ताव दिया जाये तो उसकी प्राथमिकता में सम्पन्न देश पहले आते हैं, अफ़्रीकी देश बाद में. हम उन देशों का नाम तो चाव से लेते हैं, जो अपने उत्पादों के बदले हमारी दौलत आसानी से ले लेते हैं, उन देशों को भूल जाते हैं जो हमारे लोगों को धनाड्य बना रहे हैं.    

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