कुछ दिन पहले यह खबर पढ़ी कि जयपुर में एक विश्व-स्तरीय म्यूजियम बनाया जायेगा, जिसके लिए केंद्र सरकार ने अडतीस लाख रूपये स्वीकृत किये हैं. यह संग्रहालय पुराने विधानसभा भवन में स्थापित होगा. पहले अखबार इस तरह की ख़बरों को 'विचित्र किन्तु सत्य' शीर्षक से छापा करते थे.लेकिन अब यह सामान्य खबर है. कुछ दिन पहले यह भी छपा था कि सरकार ने सभी अफसरों को अपनी संपत्ति की घोषणा करने के लिए कहा है. जवाब में अफसरों ने जो घोषणा की थी उसके अनुसार राज्य में लगभग आधे अफसर करोडपति हैं. जब एक अफसर के घर छापा पड़ने लगा तो उसने चालीस लाख के नोट आग में डाल दिए.बताया गया है कि घोषणा करने वाले अफसर तो वे हैं जो ईमानदार माने जाते हैं.बाकी ने तो आय बाद में बताने को कहा है.ये कहानी अफसरों की है. नेताओं ने कोई फ़ाइल करोड़ों से नीचे की कभी देखी ही नहीं. उनके सारे घोटाले मल्टी-करोड़ हैं.
खैर, अभी हम बात कर रहे थे, विश्व-स्तरीय म्यूजियम की. तो इसके लिए सरकार को दो सुझाव हैं. या तो सरकार इस पैसे से नए विधानसभा भवन पर रंग-रोगन करवादे.भीतर उठा-पटक लड़ाई-झगडा होते रहने से दीवारों का रंग तो ख़राब होता ही है न? या फिर पुराने विधानसभा भवन के बीचोंबीच एक स्टूल पर यह स्वीकृत राशि रख दी जाये.इस से सुन्दर म्यूजियम हो नहीं सकता.यह वर्षों तक सुरक्षित भी रहेगा. क्योंकि शहर का कोई ईमानदार व्यक्ति तो इन्हें चुराएगा नहीं. और बाकी इस राशि पर हाथ भला क्यों डालेंगे? करोड़ों की तो सोने और हीरों से जड़ी वो कटोरी है जिसे किसी ने ओबामा महोदय के कुत्ते के भोजन के लिए भेंट किया है.
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