[yah ek kahani hai, jise kalpnik namon va sthitiyon ke sath ghatna roop me prastut kiya gaya hai. हमारे समय की यह त्रासदी है कि एक ही पेड़ के फलों की तरह हर दस में से एकाध आदमी खराब निकल ही आता है. उस एक आदमी की आशंका में हम दसों को शक की नज़र से देखते हैं और कड़े नियमों में जकड़ देते हैं.यह जकड़न इतनी अंधी होती है कि जब टूटती है तो वही एकाध आदमी सबसे पहले बच कर निकल लेता है. हम उस एक आदमी की धर-पकड़ की मुहिम में दसों के चारों ओर क्रूरता रच देते हैं. यह स्थिति भी स्वीकार्य होती, अगर इस से अपराध मिट गए होते. ]
आमतौर पर लाल-बत्ती क्रास करते समय मैं दायें-बाएं नहीं देखता पर उस पर ध्यान चला गया. निश्चित रूप से वही थी. वह किसी युवक के साथ मोटर-बाइक पर बैठी थी. अभी इतनी बूढी नहीं थी कि मैं उसे पहचान न सकूं. उसकी साड़ी का पल्ला उसी लापरवाही से लटका था जो बाइक के पहिये में फंस कर कुछ भी अनर्थ कर सकता था. भीड़ भरी सड़क और ताबड़तोड़ ट्रेफिक के बावजूद मैंने इंडिकेटर देकर उन्हें रोका और लटकते पल्ले की ओर से सावधान किया. उसकी यह आदत हमेशा से थी, आते-जाते उसका दुपट्टा हमेशा एक ओर झूल कर ज़मीन पर रेंगता चलता था. वह मुझे अब तक पहचानी नहीं थी पर फिर भी लगातार देख रही थी. शायद पहचानने की कोशिश कर रही हो. मैंने किसी शंका की स्थिति में उसे छोड़ कर जाने से बेहतर यह समझा कि उसे अपना परिचय याद दिला दूं.
-मैडम, मुझे पहचाना? मैंने अब हाथ भी जोड़ दिए थे.
वह एकदम से मुझे पहचानते हुए एक कदम आगे बढ़ कर रह गई. साथ वाला युवक भी अब उसके पहचान लेने के बाद मुझे संदेह की जगह आश्वस्ति से देखने लगा.
कैसे हो बाबाजी? फिर वह खुद ही अपने इस संबोधन पर अचकचा गई.
असल में हम लगभग पैंतीस साल बाद मिल रहे थे. पैंतीस साल पहले मैं एक गर्ल्स होस्टल का चौकीदार था. उस समय कुल तेईस साल का होने पर भी होस्टल की लड़कियां मुझे बाबाजी कह कर ही बुलाती थीं. चाहे उम्र में हमसे चार-पांच साल ही छोटी हों. कोई-कोई तो एक-दो साल ही.
इस लड़की को तो मैं कभी भूल ही नहीं सकता था, क्योंकि एक रात घटना ही ऐसी घट गई थी.होस्टल का गेट रात को दस बजे बंद हो जाता था. इसके बाद आने वालों को बड़ी-मैडम से मिलवाना पड़ता था, जो काफी सख्ती से पेश आती थी. इसके साथ ही हमें यह भी हिदायत थी कि ज्यादा देर से आने वाली लड़कियों को छोड़ने कौन आता है, उस पर भी कड़ी निगाह रखो और उसे भी साथ में हाज़िर करो. एक दिन यह लड़की रात को पौने बारह बजे वापस आई थी और इसके साथ में एक अनजाना लड़का था. इसके ढेरों मिन्नतें करने के बाद भी मुझे इन दोनों को बड़ी मैडम के घर पर रात को ही पेश करना पडा था. वहां इसे आइन्दा ऐसा न करने की चेतावनी देते हुए पांच सौ रूपये का जुर्माना लगाया गया. यह लाख कहती रही कि यह लड़का ऐसा-वैसा नहीं है, परिचित भी है, पर मैडम ने एक न सुनी. बोलीं- तुम्हारे माता-पिता ने फार्म पर जिन लोगों के फोटो लगाए हैं उनके अलावा और किसी से भी तुम्हे मिलने या देर तक साथ में आने-जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. जब मैडम किसी भी तरह जुर्माना माफ़ करने पर राज़ी न हुईं तो इस लड़की ने पहली बार मुंह खोल कर उनके सामने इस तरह पलट कर जवाब दिया कि उनका भी दिल पसीज गया. यह बोली- "मैडम, आप जो तस्वीरें फार्म पर लगा कर बैठी हैं न , वो तो एक दिन काका-बाबा-नाना-मामा बन कर एल्बमों में लग जाने वाली हैं, ज़िन्दगी भर तो यही तस्वीर साथ देगी. कह कर उसने गर्व से लड़के की ओर देखा था,लड़के ने भी सर झुका लिया. लड़की फिर ज्यादा दिन होस्टल में नहीं रही. सुना था कि उसकी शादी उसी लड़के के साथ हो गई. लड़की की यह बात कालेज का कोई कर्मचारी नहीं भूल पाया. अगले दिन सब जगह इसी बात की चर्चा रही.
जब उसने बताया कि साथ वाला यह लड़का उसका बेटा है, तो मैं वर्षों पहले की उस घटना में खो गया. सच तो था, उस समय इसके हितैषी-रखवाले कह कर जिन लोगों की तस्वीरें हमने रजिस्टरों में लगा छोड़ी थी वे सब तो अब न जाने कहाँ-कहाँ होंगे.और वह अनजान सा युवक तथा उसके बेटे के रूप में उसी की हू-बहू तस्वीर पैतीस साल बाद भी एक घर में ज़िन्दगी भर के लिए साए की तरह इसके साथ है.
मैं सोच रहा था कि नियमों की ज़ंजीर भी कभी-कभी बच्चों की भावनाओं को कितना कस कर बाँध देती है कि भावनाओं पर तमाम उम्र के लिए निशान बन कर रह जाते हैं.समय जंजीरें तो काट देता है, पर क्या ये अक्स मिटाए जा पाते हैं?
bahut prabhaavshaali ghatna padhi.poora padhe bina ruki nahi.bahut achcha laga padh ke.vaastav me jindgi me kuch ghatnaayen ek khoobsurat yaad bankar humesha ke liye rah jaati hain.
ReplyDeleteaapki tippani ke liye dhanyawad. par vastav me yah koi vastvik ghatna nahin, balki ek kahani hai, jo mere ek karmchari dwara sunaai gai ghatna par aadharit hai. is par 'kahani' hone ki suchna n de pane ke liye mujhe khed hai.
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