तुलसी रामायण लिखो, फिरसे भैया बैठ
राजमहल में मंथरा, बना न पाए पैठ
अब ना देना रानियाँ, दशरथजी को तीन
राम रहें घर में सदा, ज्यों पानी में मीन
रचें स्वयंबर जनक जब, रावण को न बुलाएँ
रामलला तोड़ें नहीं, केवल धनुष उठायं
तीर चला कर लखन अब, होवें ना बेहोश
मिलावटी संजीवनी, मिले वैद्य को दोष
जूठे ना खाने पड़ें, फिर शबरी के बेर
शबरी को भी रोटियां, देना देर-सवेर
पुल कर देना काठ का, सरयू पर सरकार
कर लेगा केवट कोई, दूजा कारोबार
उनका भी घर-बार हो, फिरें न सुबहो-शाम
अपना ठीहा छोड़ कर, वन-वन में हनुमान
राज चलायें खुद भरत,मिल कर संग श्रीराम
चरण-पादुका का चलन, फिर ना करना आम
जामवंत, अंगद सभी, बाली और सुग्रीव
फिर पचड़ों में ना पड़ें, भोले-भाले जीव
दिखला देना भ्रूण की, ह्त्या का व्यापार
शूर्पनखा और ताड़का, पायें ना संसार
रूप न पाए जानकी, अबके यूं बेजोड़
या रावण के बीसियों, देना दीदे फोड़
आयें-जाएँ ना कभी, राजा धोबीघाट
धोबी बोलें भी अगर, चुप करवादें डांट
अग्निपरीक्षा अब नहीं, ना फिर अत्याचार
लव-कुश को पैदा करो, महलों में इस बार
सुन लो ये कविराज फिर, ना विवाद गहराय
दशरथ अपने महल का, पट्टा लें बनवाय
जन्म हुआ था राम का, कहाँ सनद रह जाय
विश्वामित्र-वशिष्ठ से, कागद लें लिखवाय.
adbhut anokhi uttam rachna.vyangaatmak bhaav liye hue satuug se kaluug me pravesh karati is rachna ke liye aapko shat shat naman.
ReplyDeleteaapko fir ek baar dhanyawad. aapki is hausala-afzai se shayad aur bhi rachnayen nikalen.
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