Saturday, October 18, 2014

सपने में

दो मित्र थे। बचपन से ही एकसाथ खेले-पढ़े थे। हर बात में एक समान। जो बात एक को पसंद आती, वही दूसरे को भी।
न जाने कैसे, केवल एक बात में दोनों बिलकुल अलग थे। एक अपने मन की बात किसी को बताता न था,दूसरा जो भी सोचता, या करना चाहता, झटपट सभी को बता डालता था।
अब यह अंतर कहीं तो सिर चढ़ कर बोलना ही था। नतीजा ये हुआ कि पच्चीस साल बाद दोनों में से एक बेहद अमीर हो गया, जबकि दूसरा एक सामान्य मध्यम वर्गीय नागरिक रहा।
दोस्ती तो कायम थी, लिहाजा मिलते-जुलते भी थे। एक दिन फुर्सत से बैठे-बैठे दोनों के बीच इस बात पर मंथन होने लगा कि जीवन में आखिर हम दोनों के बीच स्टेटस का इतना बड़ा अंतर क्यों आया?
एक ने कहा- "मैं अपनी हर योजना सबको बता देता था, इससे मुझे सबके सुझाव और फीडबैक मिल जाते थे और मेरे काम में मुझे शानदार मुनाफा मिलता था, जिससे मैं अत्यधिक धनी हो गया।"
दूसरा बोला-"मैंने कभी किसी को कुछ नहीं बताया, तुझे भी नहीं, कि मेरा तुझसे भी चार गुना ज्यादा धन रखा कहाँ है? यहाँ तो मैं भी सादगी से रहता हूँ, ताकि धन ऐसे ही आता रहे, जबकि तुझे दिन-रात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।"
-"लेकिन तेरा धन है कहाँ?" पहले ने आश्चर्य से पूछा।
दूसरा बोला-"देख, मैं तो तुझे बता देता,पर अभी तो मुझे बहुत नींद आ रही है, फिर बात करेंगे।"   
   
      

2 comments:

हम मेज़ लगाना सीख गए!

 ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...

Lokpriy ...