शबरी के जूठे बेर खाके चाहे लौटे कोई
चाहे भरपेट ही खिलाके होए वापसी
चाहे वनवास मिले, चाहे कारावास हो
घर-वापसी पे तो दिवाली ही दिवाली है !
चाहे भरपेट ही खिलाके होए वापसी
चाहे वनवास मिले, चाहे कारावास हो
घर-वापसी पे तो दिवाली ही दिवाली है !
प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, आखेट महल, जल तू जलाल तू
कहानी संग्रह: अन्त्यास्त, मेरी सौ लघुकथाएं, सत्ताघर की कंदराएं, थोड़ी देर और ठहर
नाटक: मेरी ज़िन्दगी लौटा दे, अजबनार्सिस डॉट कॉम
कविता संग्रह: रक्कासा सी नाचे दिल्ली, शेयर खाता खोल सजनिया , उगती प्यास दिवंगत पानी
बाल साहित्य: उगते नहीं उजाले
संस्मरण: रस्ते में हो गयी शाम,
ये एक ज़रूरी बात थी। चाहे सरल शब्दों में हम इसे विज्ञापन कहें या प्रचार, लेकिन ये निहायत ज़रूरी था कि हम परोसना सीखें। एक कहावत है कि भोजन ...
No comments:
Post a Comment