फेसबुक पर एक ज़बरदस्त बहस चल रही है। लोग "चुप रहने वालों" और "बोलने वालों" की तुलना कर रहे हैं।मुझे लगता है कि कहीं ११०० पोस्ट पूरी कर लेने वाले हमारे जैसे लोग भी किसी "नीलोफर" की चपेट में न आ जाएँ।वैसे इत्मीनान की बात ये भी है कि इस घोर तकनीकी युग में खुल्लम-खुल्ला शब्द-प्रहारों के बीच "बंद लिफाफों" की गोपनीयता अब भी कायम है।
बहरहाल, "कहना पड़ता है" कि हम सब का आपसी सद्भाव-प्रेम-विश्वास-परिहास इसी तरह कायम रहे और महा संचारी, महा वाचाली,परम उन्मादी, चरम प्रमादी इस युग में अपनी-अपनी चमक लेकर हमारे विचारों के रंगीले जुगनू सदा इसी तरह उड़ते-मंडराते-छितराते रहें।
१००० पोस्ट पूरी कर लेने के बाद मैंने यह सिलसिला रोक देना चाहा था। किन्तु कुछ मित्रों के उत्साह वर्धन के बाद मैंने बाँध के गेट फिर खोल दिए।मुझे वे सब याद आ रहे हैं। उन सब के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। उनका नाम लेने लगूँगा तो शायद बात बहुत लम्बी हो जाएगी,क्योंकि वे बहुत दूर तक फैले हैं- पिट्सबर्ग, अमेरिका के अनुराग जी से लेकर नजदीकी मोहल्ले की नीलिमा टिक्कू जी तक।
"रंगभेद"की खिलाफत को लेकर हम सब उन हस्तियों के साथ हमेशा रहे हैं जिन्होंने रंगभेद रुपी पक्षपात का हमेशा विरोध किया। वे चाहें मार्टिन लूथर किंग हों,नेल्सन मंडेला हों,या बराक ओबामा साहब।
लेकिन विडंबना है कि आज हमारा देश फिर रंगभेद के चक्रव्यूह में फंसा है।
काश! हम गर्व से दुनिया से कह पाते कि हमारे जिस मुल्क को दुनिया में हमेशा गरीब,पिछड़ा,निर्धन समझा जाता रहा है, उसके ढेरों वाशिंदों के अरबों रूपये आज विश्व भर के तमाम मुल्कों में जमा हैं। लेकिन क्या करें- "सफ़ेद काले" का चक्कर यहाँ भी बीच में आ गया। अगली बार जब हम सब दीवाली मनाएं तो लक्ष्मी पूजन के समय कृपया यह भी देख लें कि लक्ष्मी मैया कौन से रंग का परिधान पहन कर हमारी देहरी पर आ रही हैं?श्वेत या श्याम !
बेचारे हम !
बहरहाल, "कहना पड़ता है" कि हम सब का आपसी सद्भाव-प्रेम-विश्वास-परिहास इसी तरह कायम रहे और महा संचारी, महा वाचाली,परम उन्मादी, चरम प्रमादी इस युग में अपनी-अपनी चमक लेकर हमारे विचारों के रंगीले जुगनू सदा इसी तरह उड़ते-मंडराते-छितराते रहें।
१००० पोस्ट पूरी कर लेने के बाद मैंने यह सिलसिला रोक देना चाहा था। किन्तु कुछ मित्रों के उत्साह वर्धन के बाद मैंने बाँध के गेट फिर खोल दिए।मुझे वे सब याद आ रहे हैं। उन सब के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। उनका नाम लेने लगूँगा तो शायद बात बहुत लम्बी हो जाएगी,क्योंकि वे बहुत दूर तक फैले हैं- पिट्सबर्ग, अमेरिका के अनुराग जी से लेकर नजदीकी मोहल्ले की नीलिमा टिक्कू जी तक।
"रंगभेद"की खिलाफत को लेकर हम सब उन हस्तियों के साथ हमेशा रहे हैं जिन्होंने रंगभेद रुपी पक्षपात का हमेशा विरोध किया। वे चाहें मार्टिन लूथर किंग हों,नेल्सन मंडेला हों,या बराक ओबामा साहब।
लेकिन विडंबना है कि आज हमारा देश फिर रंगभेद के चक्रव्यूह में फंसा है।
काश! हम गर्व से दुनिया से कह पाते कि हमारे जिस मुल्क को दुनिया में हमेशा गरीब,पिछड़ा,निर्धन समझा जाता रहा है, उसके ढेरों वाशिंदों के अरबों रूपये आज विश्व भर के तमाम मुल्कों में जमा हैं। लेकिन क्या करें- "सफ़ेद काले" का चक्कर यहाँ भी बीच में आ गया। अगली बार जब हम सब दीवाली मनाएं तो लक्ष्मी पूजन के समय कृपया यह भी देख लें कि लक्ष्मी मैया कौन से रंग का परिधान पहन कर हमारी देहरी पर आ रही हैं?श्वेत या श्याम !
बेचारे हम !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 30/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 41 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
जारी रहें।
ReplyDeleteAap donon ka bahut-bahut aabhaar!
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