Friday, October 3, 2014

"वेरी चीप"

समाजसेवा से जुड़ा एक संस्थान एक भव्य कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रहा था। प्रबंधकों ने सब कुछ सोच कर कार्यक्रम की रूपरेखा बना ली, कौन मुख्य अतिथि होगा, कौन-कौन अतिथि होंगे, कौन वक्ता होंगे,किस विषय पर बातचीत होगी, जलपान में क्या परोसा जायेगा, इत्यादि। समारोह का पूरा बजट भी बना लिया गया।कार्यक्रम को नाम दिया गया-'ज्ञान- अर्जन'  
जब स्वीकृति के लिए फ़ाइल अध्यक्ष के पास गयी तो उन्होंने इस पर टिप्पणी की, "एक बार वित्तीय सलाहकार को भी दिखा लें"
सलाहकार महाशय टिप्पणी देख कर गदगद हो गए। उन्होंने तत्काल प्रबंधकों को अपने चैंबर में बुलाया और उनसे मुखातिब हुए। बोले-"सुन्दर कार्यक्रम है, केवल मुख्य अतिथि श्रीमान 'क' की जगह श्रीमान 'ख' को बुला लें।"
-"क्यों सर?" प्रबंधकों ने विनम्रता से कहा।
वे बोले-"आप क को लेने कार भेजेंगे, एस्कॉर्ट भेजेंगे, प्रेस बुलाएँगे, फोटोग्राफर बुलाएँगे।जबकि श्रीमान ख अपनी कार से आएंगे, ड्राइवर नहीं, स्वयं ड्राइव करेंगे, मोबाइल पर तस्वीरें लेकर मीडिया, प्रेस,फेसबुक,ट्विटर पर भी वे स्वयं डालेंगे, हो सकता है, उनके संस्थान का सभागृह आपको उपलब्ध करा दें,वहां जलपान की व्यवस्था भी उन्हीं की रहेगी। बहुत से श्रोता भी आपको उनके ही मिल जायेंगे, नेट से निर्धारित विषय पर बहुत सी सामग्री तो वे दिलवा ही देंगे।"
प्रबंधक-गण एक दूसरे का मुंह देखने लगे। साहस करके एक प्रबंधक बोले- "अद्भुत सर !केवल एक छोटा सा सुझाव है.… "
-"हाँ-हाँ बोलिए।"
-"हम लोग कार्यक्रम का नाम बदल दें? 'ज्ञान-लंगर' कैसा रहेगा?"
सलाहकार महोदय असमंजस में थे, वे समझ नहीं पा रहे थे कि उन्होंने संस्थान के हित में कैसे सुझाव दिए हैं !                 
     

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